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मोक्षा-मम्मी ! आज टिफीन में क्या है ? जयणा- बेटा! रोटी और मोगर की सब्जी | मोक्षा-मम्मी ! आज कोई तिथि है क्या ?
जयणा- हाँ बेटा! आज चौदस है।
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मोक्षा - तो मम्मी ! मेरी बोतल में गरम पानी तो भरा है ना ?
जयणा- - हाँ बेटा! मुझे पता है।
मोक्षा- थैंक्यू मम्मी ! आपने मुझे बता दिया। मैं स्कूल में ध्यान रखूँगी।
(आर्यावर्त नारी को गृहिणी पद प्रदान किया गया था। घर के सभी सदस्य, बच्चें, पति आदि को सजाने-संवारने का कार्य नारी स्वयं करती थी । किन्तु अफसोस आज नारी के सभी आदर्शों को हम खो बैठे हैं। आज की नारी को अपने बंगलों एवं बगीचों को संवारना आता है किन्तु अपने बच्चों को संस्कारित बनाना नहीं आता। आज नारियों की कमनसीबी की यह पराकाष्ठा है कि उनके बच्चें अभक्ष्य खाते हैं। इसमें दोष माता-पिता का या बच्चों का ? दोष बच्चों का नहीं, माँ-बाप का है। आर्य महिलाओं को अपनीं मर्यादाओं को जानना चाहिए एवं पुनः आचरण में लाना चाहिए। उच्च संस्कारों से सुसंस्कृत नारी प्रात: कार्य पूर्ण कर स्वयं अपने हाथों से रसोई बनाकर सबको भोजन करवाती थी। इस प्रकार का भोजन भी एक आनंद
रूप था।
केन्टीन अथवा होटल में अन्य सब कुछ मिलेगा, किन्तु घर जैसा वातावरण नहीं मिलेगा, माता का वात्सल्य-प्यार नहीं मिलेगा। आज उन माताओं को कहने का मन हो रहा है कि बच्चों को केवल धन की आवश्यकता नहीं होती बल्कि साथ-साथ माता के वात्सल्य की, पिता के प्यार की भी आवश्यकता होती है। माता जब बच्चों को छाती से लगाती है तब बच्चा आनंद विभोर हो जाता है मानो कि उसे स्वर्ग मिल गया हो। वह आनंद उसे रूपयों से कभी नहीं मिलता।
और उसी शाम मोक्षा प्रतिक्रमण जाने के लिए डॉली को बुलाने गई। वह जानती थी कि डॉली प्रतिक्रमण नहीं आएगी लेकिन उसने सोचा कि इस बहाने डॉली से मिलना हो जायेगा और यदि वह आने के लिए तैयार हो जाये तो अच्छा ही है। उस दिन सुषमा को बहुत बड़ी पार्टी में जाना था और शाम का खाना भी होटल में ही था। इसलिए सुषमा घर पर खाना न बनाकर डॉली के लिए पीझा का आर्डर देकर चली गई। मोक्षा डॉली के घर आई। तब डॉली उस वक्त पीझा खा रही थी ।)
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