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प्रलोभन देती थी। उसे अपने जन्मदिन पर उतने गिफ्ट नहीं मिलते थे जितने उस दिन मिलते थे जब वह ज्यादा गाथा याद करती या ज्यादा सामायिक करती थी। जयणा के मन में उसकी बेटी के व्यवहारिक शिक्षण से भी ज्यादा महत्त्व धार्मिक शिक्षण का था।
___ इस तरफ अपनी आदतों से मजबूर सुषमा अपनी बेटी को बार-बार कामवाली के भरोसे छोड़कर किटी पार्टी में, होटल में या शॉपिंग करने चली जाती थी। अपनी बेटी को मंदिर में ले जाकर जिनदर्शन करवाना तो दूर, घर में परमात्मा के फोटो के दर्शन करवाना भी वह जरुरी नहीं समझती थी। फास्ट फॉरवर्ड लाईफ की आदत होने के कारण सुषमा के पास अपनी बेटी के लिए इतना भी समय नहीं था कि वह अपनी बेटी को स्तवन या कुछ अच्छी बातें सीखा सके।
___ अपनी लाईफ स्टाईल और संस्कार के अनुरूप सुषमा ने अपनी बेटी का नाम 'डॉली' रखा। सुषमा ने उसे धार्मिक शिक्षण तो नहीं दिया, लेकिन व्यवहार में भी गुरुजनों, माता-पिता के प्रति आदर भाव नहीं सिखाया। जिसके कारण बचपन से ही छोटी-छोटी बातों में माता-पिता के सामने बोलना, हर बात के लिए जिद्द करना, बच्चों के साथ लड़ना-झगड़ना, झूठ बोलना आदि डॉली का स्वभाव बन गया। तथा
अपनी मम्मी को 24 घंटें टी.वी. के सामने बैठते, फोन पर गप्पे मारते, सहेलियों के साथ शॉपिंग और किटी पार्टी करते देख डॉली को भी वहीं जीवन पसंद आने लगा।
मोक्षा छुट्टी के दिन 5 बजे उठकर आठ नवकार गिनकर सीधे सामायिक रुम में जाकर अपने मातापिता के साथ सामायिक लेती थी, सामायिक के बाद अपने माता-पिता को प्रणाम कर, नहाकर वह पाठशाला जाती थी। एक दिन अपनी माँ के कहने पर मोक्षा डॉली को भी पाठशाला ले जाने उसके घर गई, और दरवाज़े की घंटी बजाई। सुषमा उस समय अखबार पढ़ रही थी। सुबह-सुबह घंटी की आवाज़
सुनकर
सुषमा- हे भगवान! ये सुबह-सुबह कौन परेशान करने आ गया। रामू जाओ दरवाज़ा तो खोलो।
(दरवाज़ा खुलने पर मोक्षा अंदर आई। उसने सुषमा के पैर छूकर प्रणाम किया। सुषमा ने उसकी इस हरकत को देखकर कहा) सुषमा- अरे मोक्षा! क्या तुम 19 वीं सदी की तरह प्रणाम-वणाम कर रही हो। छोड़ो ये प्रणाम और बोलो गुड मार्निंग, बिल्कुल अपनी माँ पर गई हो। खैर बताओ कैसे आना हुआ? मोक्षा - आन्टी! मैं पाठशाला जा रही थी और मम्मी ने कहा कि डॉली को भी साथ में लेते जाना। इसलिए मैं उसे बुलाने आई हूँ। क्या कर रही है डॉली? मैं उसे ले जाऊँ ?
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