Book Title: Jainism Course Part 01
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 191
________________ मोक्षा- तुम्हें थोड़ी भी शर्म नहीं आती। अपने मम्मी-पापा के बारे में तो सोचा होता? डॉली - जिन्होंने कभी मेरे बारे में नहीं सोचा। भला मैं क्यों उनके बारे में सोचु? बचपन से मैं उनके प्यार के लिए तरसती रही पर उन्होंने कभी मुझे प्यार नहीं दिया। अरे प्यार तो दूर उनके पास मेरे लिए समय भी नहीं था। जो प्यार मुझे चाहिए था वह प्यार मुझे समीर ने दिया। हर व्यक्ति को प्यार पाने का हक है। मुझे घर में कभी प्यार नहीं मिला तो मैंने बाहर ढूँढा, इसमें गलत क्या है? मोक्षा - डॉली! कम से कम अपने समाज, अपने धर्म के बारे में तो सोचो। क्या कहेंगे लोग, एक जैन धर्म की लड़की एक मुसलमान के साथ? .. डॉली- प्लीज़ मोक्षा ऐसी फालतु बातों में मुझे और बोर मत करो। Imust leave now बॉय। (इधर डॉली की हरकतों से अनजान डॉली के माता-पिता डॉली के लिए अच्छे रिश्ते ढूँढने में लग गए। सुषमा ने अपनी बेटी की शादी के लिए गहने आदि खरीदकर पहले से ही रख लिए थे। पर अफसोस की बात यह लगती है कि डॉली के माता-पिता के पास पैसे तो थे पर कमी थी वक्त की, संस्कार देने की। उन्हें नहीं पता था कि यह कमी उनकी बेटी के दिल में उनके लिए नफरत पैदा कर देगी। उनकी यह कमी उनकी बेटी को उस मोड़ पर ले जाएगी जहाँ वह लाडली बेटी अपने माता-पिता के सारे सुनहरे सपने कुचलने के लिए तैयार हो जाएगी।) (यहाँ डॉली मोक्षा की बातों को अनसुना कर समीर से मिलने चली गई। समीर उसे घर छोड़ने आया, डॉली की माँ सुषमा ने बॉलकनी से डॉली को एक लड़के के साथ घर आते देख लिया। जैसे ही डॉली घर आई वैसे ही सुषमा ने पूछा-) सुषमा- डॉली! क्या बात है ? आज इतनी देर कैसे हो गई आने में ? डॉली - मॉम! आज एक्सट्रा क्लास थी इसलिए लेट हो गया। सुषमा - झूठ मत बोलो डॉली! स्वीटी तो कब की आ चुकी है और मैंने उससे पूछा तब उसने बताया कि आज कोई एक्सट्रा क्लास नहीं थी। तो फिर तुम इतनी देर कहाँ थी। डॉली - तो मुझे अब आपको अपने एक-एक समय का हिसाब देना पड़ेगा? ऑटो न मिलने के कारण लेट हो गया। सुषमा- तुम्हें छोड़ने कौन आया था? डॉली - वो! ...वो! वो तो मेरे कॉलेज का दोस्त है, मॉम। मैंने आपको बताया ही है ना कि ऑटो न

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