Book Title: Jainism Course Part 01
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 199
________________ मैं अपनी इच्छा से समीर के साथ जा रही हूँ और उसी से शादी करूंगी। मॉम मैं अपना चेलेंज जीत गई। आप लोग यही समझना कि आपकी कोई बेटी थी ही नही, आपको ऐसा करने में ज्यादा तकलीफ नहीं उठानी पड़ेगी, क्योंकि वैसे भी आपने मुझे कभी भी बेटी की तरह प्यार तो दिया ही नहीं। आपने आज तक मेरे लिए जो कुछ भी थोड़ा बहुत किया उसके लिए थैक्स। डॉली "जिंदगी में हर पल तू, रहना सदा ही जिन्दा, तेरे कारण माँ-बाप को, ना होना पड़े शर्मिन्दा, यदि भाग गई घर से तो, वे जीते जी मर जाएँगे, तू उनकी बेटी है, सोच-सोच पछताएँगे।" इधर मोक्षा की सगाई 'विवेक' के साथ हो गई। विवेक के माता-पिता का नाम सुशीला और प्रशांत था। उसके दो भाई और एक बहन थी। उनके नाम विनय, वीरांश और विधि था। वीरांश सबसे छोटा होने के कारण उसे पढ़ाई के लिए विदेश भेजा था। विवेक और मोक्षा की शादी के वक्त वीरांश की पढ़ाई पूरी हो गई थी साथ ही अच्छी नौकरी भी लग गई थी। अपने भाई की शादी पर वह भारत आया हुआ था। दोनों तरफ शादी की तैयारियाँ जोर-शोर से होने लगी और देखते ही देखते शादी का दिन भी नज़दीक आ गया। अपनी बेटी मोक्षा को देने के लिए जयणा और जिनेश ने कोई कमी नहीं रखी। व्यवहारिक जीवन में उपयोगी सामग्रियों के साथ-साथ धार्मिक जीवन में उपयोग में आने वाली हर सामग्री मोक्षा को दहेज़ में दी। घर के आँगन में हँसने-खेलने वाली मोक्षा आज सदा के लिए उस घर से पराई हो गई। ससुराल जाती मोक्षा को जयणा ने अंतिम हितशिक्षा के रूप में कहा- “बेटी!आज से यह घर तुम्हारे लिए पराया बन गया है और वह तुम्हारा अपना घर है। अब उस घर में रहने वाले सास-ससुर ही तुम्हारे माता-पिता है, देवर तुम्हारा भाई है और ननंद तुम्हारी बहन है। अब से तुम उनके साथ माता-पिता और भाई-बहन जैसा व्यवहार करना। प्रेम से उन सब का दिल जीत लेना। उन्हें जैसा अच्छा लगे वैसे रहना। अपने सास-ससुर की सेवा में कभी कोई कमी मत रखना। अपने देवर और ननंद को इतना प्रेम देना कि वे तुम्हारे दोस्त बन जाए। विवेक को पसंद न हो ऐसा कोई कार्य मत करना। आज से तुम उसकी धर्मपत्नी हो इसलिए सुख-दुःख में हमेशा उसका साथ देना। यदि तुम वहाँ किसी का प्रेम न पा सकी , किसी का दिल नहीं जीत सकी, किसी को अपना न बना सकी तो समझ लेना इस घर के दरवाज़े भी तुम्हारे लिए हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो (149

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