Book Title: Jainism Course Part 01
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 177
________________ सुषमा- (हँसते हुए) क्या....! डॉली और पाठशाला। डॉली तो अभी सो रही है। वैसे भी वह पाठशाला नहीं आयेगी। क्योंकि आधे घंटे के बाद उसकी डान्स क्लास है। (सुषमा की बात सुनकर मोक्षा पाठशाला चली गई।) (बड़ा दुःख होता है यह जानकर कि जिस भारत वर्ष में माँ को संस्कार की जननी माना जाता था वहीं माँ आज बच्चों के संस्कारों का खून करने के लिए हावी हो गई है और इससे भी ज्यादा दु:ख तो तब होता है जब इन संस्कारों के खून को फेशन का नाम दिया जाता है। बच्चें तो गीली मिट्टी के समान होते हैं। बचपन में उन्हें जैसा आकार दें, वे वैसे बन जाते हैं। आज के ज़माने में जहाँ माता-पिता दोनों के पास बच्चों के लिए वक्त नहीं होता है, वहाँ पाठशाला ही एक ऐसा स्थान है जो बच्चों को सुसंस्कृत बनाती है। गुरुजनों के प्रति विनय पाठशाला से ही प्राप्त होता है। सुषमा के पास अपनी बेटी डॉली को डान्स क्लास में भेजने के लिए समय था लेकिन पाठशाला भेजने के लिए समय नहीं था। माता-शत्रु पिता-वैरी, येन बालो न पठितः। सभा मध्ये न शोभते, हंस मध्ये बको यथा।। - वह माता-पिता वैरी है जो अपने बच्चों को धर्म का शिक्षण नहीं देते हैं। उन्हें नहीं पढ़ाते हैं। जैसे हंसों के बीच बगुले की हँसी होती है। वही हालत पंडितों की सभा में संस्कार विहीन बच्चों की होती है।) इधर मोक्षा के जाने के बाद डॉली जाग गई और उठते ही ... डॉली- मॉम! व्हेयर इज़ माय बेड टी? मेरी चाय कहाँ है? सुषमा- लाई बेटा।... ये लो आपकी चाय और अभी उठकर डान्स क्लास के लिए तैयार हो जाओ। डॉली- ओ.के. मॉम। __ (कुछ दिनों बाद चौदस के दिन सुबह के समय सुषमा सो रही थी और डॉली के स्कूल जाने का समय हो रहा था। तंब....) डॉली - मॉम! वॉट इज़ दिस? आपने अभी तक मेरा टिफीन बॉक्स नहीं भरा। मुझे देरी हो रही है। सुषमा- आय एम सॉरी बेटा! मैं कल पार्टी से बहुत लेट आई थी। इसलिए मुझे बहुत नींद आ रही है। एक काम करो अलमारी से पैसे ले लो और केन्टीन से कुछ भी लेकर खा लेना। डॉली- रोज़ यही तो करती हूँ। सुषमा- समझा करो बेटा। (और उधर ....) जयणा- मोक्षा! बेटा ये लो अपना टिफीन बॉक्स।

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