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उ.: इस प्रश्न को गंभीरतापूर्वक सोचने पर सुंदर व तार्किक उत्तर प्राप्त होगा। प्रथम बात तो यह है कि उस पुष्प को परमात्मा के चरणों में समर्पित करने के लिए नहीं चुंटे होते तो क्या पुष्प को कोई चूंटता ही नहीं? नहीं; पुष्प तो माली की आजीविका का साधन है। अत: अपनी आजीविका को निभाने के लिए माली फूलों को अवश्य चॅटेगा ही। अब चुने हुए उन फूलों को माली दूसरों को बेचेगा ही। उसमें भी यदि किसी कामी व्यक्ति ने खरीदा तो उसे वह अपनी पत्नी या प्रेमिका को अर्पित करेगा और वह स्त्री के वेणी या बालों में गूंथा जायेगा। जिससे उस पुष्प को किलामणा ज्यादा होगी ही ....। ___मान लो कि, माली ने फूल को चुंटा नहीं और वह वृक्ष पर ही रहा, तो भी पुष्प का जीवन कितने क्षणों का ? कितना सुरक्षित ? किसी पक्षी, प्राणी या पशु की नज़र में आने पर उसकी हालत क्या होगी? फूल जानवर के जबड़े में चबा ही जायेगा? उससे क्या फूल को कम पीड़ा होगी?
ना, नहीं! नहीं! इस प्रकार फूल को बेचे तो भी किलामणा होगी, चुंटे नहीं तो भी किलामणा बनी रहेगी। उसके बजाय परमात्मा के चरणों में समर्पित करने से वह पुष्प अवश्य सुरक्षित बना रहता है।
जो पुष्प प्रभु की पूजा में उपयुक्त होते है, वे अवश्य भव्य होते हैं; अत: ऐसे पुष्पों को परमात्मा की प्रतिमा पर चढ़े हुए देखकर, ऐसी भावना भावित करें कि “अहो! एकेन्द्रिय का यह जीव कितना सुयोग्य है, कितना भाग्यशाली है कि उसे परमात्मा के चरणों में स्थान प्राप्त हुआ” अर्थात् पुष्प पूजा में हिंसा या पुष्प की आत्मा को किलामणा होने की बात या तर्क तो सरासर व्यर्थ है।
धूप पूजा करने की विधि * धूप दानी में यदि पहले से ही धूपबत्ती प्रज्ज्वलित हो तो दूसरी धूपबत्ती न करें। (स्वयं के घर से लाई हुई अगरबत्ती प्रगट कर सकते हैं ।) * अंग पूजा पूर्ण होने के बाद मूल गंभारे के बाहर खड़े रहकर ही धूप पूजा आदि अग्रपूजा करें तथा धूप को हाथ में रखकर प्रदक्षिणा न दें। * पुरुष एवं स्त्रियाँ प्रभुजी के बायी तरफ खड़े रहकर धूप पूजा करें। धूप पूजा कादोहा:- “ध्यान घटा प्रगटावीए, वामनयन जिनधूप।
__ मिच्छत दुर्गंध दूर टले, प्रगटे आत्मस्वरूप॥" “ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय,
श्रीमते जिनेन्द्राय धूपं यजामहे स्वाहा।' अर्थः “हे प्रभो । जिस प्रकार धूप दुर्गन्ध को हटाकर सौरभ को प्रसारित करता है और वातावरण को पवित्र