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तिलक करने की विधि * पुरुष ज्योति (0) आकार में एवं स्त्रियाँ गोल (०)तिलक करें। * प्रभुजी की दृष्टि नहीं पड़े ऐसे स्थान पर पद्मासन में बैठकर तिलक करें। * दर्पण का उपयोग तैयार होने के लिए न करें। * “मैं भगवान की आज्ञा शिरोधार्य करता हूँ" इस भावना से तिलक करें।
गंभारे में प्रवेश करने की विधि * मुखकोश बांधकर पहले दायें पैर को गंभारे में रखते हुए दूसरी निसीहि बोलकर प्रवेश करें। गंभारे में संपूर्णतया मौन रखें।
प्रभु पर रहे हुए निर्माल्य को दूर करने की विधि * सर्व प्रथम निर्माल्य (प्रभुजी के अंग पर रहे फूल-चंदन आदि) थाली में लेकर कीड़ी जैसे सूक्ष्म जीवों का निरीक्षण कर दूर करें एवं प्रभुजी को मोर पीछी से प्रमार्जना करें। * एक शुद्ध वस्त्र को पानी में भिगोकर उससे बरख, बादला, आदि दूर करें अति आवश्यक हो तो ही सावधानी पूर्वक वालाकूची का उपयोग कर चंदन आदि दूर करें। फिर निम्न विधि से अंगपूजा करें।
पक्षात पूजा करने की विधि * मुखकोश नाक से नीचे न उतरे इसका ध्यान रखें। * सर्व प्रथम पंचामृत से पक्षाल करने के पश्चात् ही शुद्ध जल से पक्षाल करें। * दोनों हाथों में कलश धारण कर प्रभुजी के मस्तक (सिर शिखा) पर ही पूरा अभिषेक करें पर नवांगी पूजा की तरह पक्षाल न करें। * कलश का स्पर्श प्रभुजी को न हो एवं कलश हाथ से गिर न जायें इसका खास ध्यान रखें। * पक्षाल का जल नीचे गिरकर पैरों में न आयें इसका विशेष ध्यान रखें। * पूजा के समय प्रभुजी को अपने वस्त्रों का स्पर्श न हो, इसका विशेष ध्यान रखें। * पक्षाल का पानी पैरों में न आयें ऐसे स्थान पर परठे। जल पूजाका दोहा- “जल पूजा जुगते करो, मेल अनादि विनाश,
जल पूजा फल मुज होजो, माँगुएम प्रभु पासा" अर्थ : हे प्रभु ! इस पूजा के फल से अनादिकाल से मेरी आत्मा पर लगे हुए कर्म रूप मैल का विनाश हो। * ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय