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* टाइपिस्ट की तरह धड़ाधड़, फटाफट पूजा न करें। * लांछन, हथेली एवं श्रीवत्स की पूजा न करें। * प्रभुजी के नव अंग की तेरह तिलक से पूजा की जाती है। प्रत्येक तिलक के समय अँगली में केसर लेकर पूजा करना उचित है । तेरह बार अंगुली में केसर लेकर तिलक करने पर 9 अंग के 13 अंग नहीं हो जाते । अंग तो 9 ही गिने जाएँगे। अंग पूजा करते समय दोहे मन में बोलें। गंभारे के बाहर खड़े रहने वाले जोर से भी दोहे बोल सकते हैं। प्र.: फणा की पूजा कैसे करनी चाहिए? उ.: फणा की पूजा अलग से करनी योग्य नहीं है। फणा प्रभु की शोभा रूप होने से प्रभु का अंग समझकर शिखा का तिलक करते समय अनामिका से ही फणा (अग्रभाग में नहीं) पर तिलक कर सकते हैं। परंतु नव अंग की पूजा पूरी होने के बाद धरणेन्द्र देव मानकर अंगूठे से फणा की पूजा करना अनुचित है। प्र.: लंछन क्या है? उसकी पूजा करनी चाहिए या नहीं? उ.: जीवंत भगवान की दाहिनी जंघा पर रोमराजी अथवा रेखाओं से लंछन का आकार बना होता है । यह किस प्रभुजी की प्रतिमा है ? यह जानने के लिए प्रतिमा के नीचे उन प्रभु का लंछन बनाया जाता है। इसकी पूजा नहीं की जाती। (पूजा करने से लंछन अस्पष्ट हो जाता है।) प्र.: अष्ट मंगल की पाटली की पूजा कर सकते हैं या नहीं? उ.: इन्द्र महाराजा प्रभु के सन्मुख भक्ति से अष्ट मंगल का आलेखन करते है। उसके प्रतीक रूप में अष्टमंगल की पाटली प्रभु के आगे मंगल रूप में रखी जाती है। इसकी पूजा नहीं करके इसका आलेखन करना (प्रभु के सामने धरणा) चाहिए। प्र.: सिद्धचक्रजी की पूजा के बाद प्रभु की पूजा कर सकते हैं? .. उ.: सिद्धचक्रजी की पूजा के बाद प्रभु पूजा कर सकते हैं। क्योंकि नवपदजी में आचार्यजी-उपाध्यायजी एवं साधु महात्मा जो बताए गये हैं वे कोई व्यक्ति विशेष न होकर गुण रूप में हैं, अतः पूजा कर सकते हैं। प्र.: गौतम स्वामीजी आदि गणधर की प्रतिमा की पूजा करने के बाद प्रभु पूजा कर सकते
उ.: गौतमस्वामी एवं पुण्डरीक गणधर आदि की प्रतिमा यदि पर्यकासन (वीतराग मुद्रा) में हो तो उनकी पूजा करने के बाद प्रभुजी की पूजा कर सकते हैं, परंतु यदि गुरु मुद्रा में हो तो उनकी पूजा प्रभु पूजा करने के बाद में ही करनी चाहिए।