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ABO जिन मंदिर
प्र.: पूजाके कितने प्रकार हैं? एवं कौन कौन से है? उ.: पूजा के दो प्रकार हैं
1. द्रव्य पूजा : जल, चंदन आदि द्रव्यों से की जाने वाली प्रभु की पूजा।
2. भाव पूजा : स्तवन, स्तुति, चैत्यवंदन आदि से प्रभु के गुणगान करना। प्र.: प्रभु की द्रव्य पूजा करने से कच्चे पानी, फूल, फल, धूप, दीप, चंदन घिसना आदि से जो जीव विराधना होती है क्या उसमें पाप नहीं लगता? उ.: जो जीव संसार के छ: काय के कूटे में बैठा है और नश्वर शरीर के लिए सतत पाप कर रहा है, वैसा जीव आत्मा में भावोल्लास लाने के लिए प्रभु की द्रव्य पूजा करे, यह उचित है। जयणा पूर्वक प्रभु की द्रव्य पूजा करने पर उसे तनिक भी पाप नहीं लगता। प्रत्युत अनेक गुणा निर्जरा ही होती है। ललित विस्तरा ग्रंथ में कहा गया है, कि जो व्यक्ति पुष्पादि के जीवों की दया सोचकर पूजा नहीं करता एवं अपने लिये धंधादि में एवं घर में अनेक जीवों का संहार करता है उसे पूजा नहीं करने के कारण महापाप लगता है। प्र.: द्रव्य पूजा से आत्माको लाभ होता है यह कैसे समझाजासकता है? उ.: शास्त्रकारों ने यह समझाने के लिये कूप दृष्टांत दिया है। जैसे कोई व्यक्ति पानी के लिए कुआँ खोदता है। तो कुआँ खोदते समय उसकी तृषा बढ़ती है, कपड़े गंदे होते हैं एवं थकान भी लगती है। फिर भी वह कुआँ इसलिए खोदता है कि एक बार पानी की शेर मिल जाने पर हमेशा के लिए तृषा शमन, कपड़े साफ करना एवं स्नान से थकान उतारना आसान बन सकता है। उसी प्रकार द्रव्य पूजा में यद्यपि बाह्य रूप से हिंसा दिखती है। लेकिन उससे उत्पन्न होने वाले भाव से संसार के आरम्भ-समारंभ कम हो जाते हैं एवं किसी जीव को द्रव्य पूजा करते-करते दीक्षा के भाव भी आ सकते है। जिससे आजीवन छ: काय की विराधना अटक जाती है। प्र.: साधु भगवंत पूजा क्यों नहीं करते? उ.: संसार के त्यागी साधु भगवंत जल, पुष्पादि की विराधना से सर्वथा अटके हुए होते हैं। उनके भावों में सतत पवित्रता बनी रहती है। बिना द्रव्य पूजा ही शुद्ध भाव प्राप्त होने से उन्हें द्रव्य पूजा की आवश्यकता नहीं रहती है। प्र.: भगवान तो कृतार्थ है, उनको किसी चीज़ की जरूरत नहीं होती तो उनको उत्तम द्रव्य