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बहुत आगे बढ़ गई। शांताबेन से बदला लेने के लिए पद्माबेन उसे किसी भी प्रकार से खत्म कर देना चाहती थी। पर जब कोई उपाय नहीं मिला तब गुस्से में आकर पद्मा बेन ने स्वयं के शरीर पर आग लगा दी एवं दौड़कर शांता बेन से जा लिपटी। शांता बेन ने अपने आप को बचाने की बहुत कोशिश की। परंतु पद्मा बेन ने उसे नहीं छोड़ा। यह पद्मा बेन की कृष्ण लेश्या हुई। यहाँ पद्मा बेन शांता बेन को मारने के आनंद में स्वयं के मरने की पीड़ा भूल गई। * रमेश एक विषय में फेल हुआ और महेश दो विषय में फेल हुआ। तब रमेश स्वयं के नुकसान को भूलकर महेश दो विषय में फेल हुआ, इसलिए वह खुश हुआ। इस प्रकार यह कृष्ण लेश्या हुई। 2. नील तेश्या- इस लेश्या वाला जीव मायावी, दांभिक-वृत्तिवाला, रिश्वत लेने का आग्रही, चंचल चित्त वाला, अति विषयी एवं मृषावादी होता है। * इस लेश्या में जीव स्वयं के क्षणिक लाभ के लिए दूसरों का भारी नुकसान भी कर देता है। दृष्टान्त- मकान मालिक के अति दबाव के बावजूद भी किरायेदार घर खाली नहीं कर रहा था। इतने में भूकंप आया और मकान गिर गया। जिसमें किरायेदार मर गया एवं मकान मालिक का घर भी खाली हो गया। इसमें मकान खाली कराने के स्वार्थ से किरायेदार के मर जाने पर भी नील लेश्या वश मालिक खुश हुआ। * अपनी थोड़ी सुंदरता के लिए पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा से जन्य लिप्स्टिक, शेम्पू आदि का उपयोग करना नील लेश्या हैं। * 2-5 लाख के दहेज़ के खातिर बहू को मार डालना। यह भी नील लेश्या है। * परमाधामी जीव नारकी के जीवों को दुःख देने में आनंद लेते है। वह नील लेश्या है। वैसे ही छोटे बच्चों को चिढ़ाकर, उनके रोने पर खुश होना भी नील लेश्या है अर्थात् अपनी थोड़ी खुशी के लिए छोटे बच्चों को रुलाना। 3.कापीत लेश्या- इस लेश्या वाला जीव मूर्ख, आरंभ-मग्न, किसी भी कार्य में पाप नहीं मानने वाला, लाभालाभ के प्रति उदासीन, अविचारक एवं क्रोधी होता है। * इस लेश्या में जीव सामान्य लाभ के लिए नहीं परंतु अपने बड़े नुकसान से बचने के लिए दूसरों को नुकसान पहुंचाता है। दृष्टान्त- एक सियाल पानी में गिरा। उतने में एक बकरी आई। बकरी ने पूछा - “पानी कैसा है?'' तब सियाल ने कहा- “पानी बहुत मीठा है। तू भी आ जा।" वह अंदर कूदी। तब सियाल बकरी पर चढ़कर बाहर निकल गया और बकरी से कहा कि अब तू दूसरे की राह देख। सियाल ने स्वयं के बचने रुपी बड़े लाभ के लिए बकरी को फँसा दिया। इसलिए वह कापोत लेश्या है।