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लेश्या
लेश्या यह जैन दर्शन में सुप्रसिद्ध पारिभाषिक शब्द है। योगवर्गणा के अंतर्गत कृष्णादि द्रव्य के संबंध से उत्पन्न होने वाले आत्मा के परिणाम विशेष को लेश्या कहते है । लेश्या हमारी चेतना की एक रश्मि है। लेश्या का अर्थ है - रंग, भावधारा, आभामण्डल। इसके छः भेद है। उसमें अशुभ कर्म की विकृति से आत्मा में कृष्ण (काला), नील (डार्क ब्लू), कापोत (कबूतर समान लाइट ब्लू) ये तीन रंग के पुद्गल द्रव्य उत्पन्न होते हैं। यह अशुभ द्रव्य लेश्या है। तथा शुभ कर्म की प्रकृति से आत्मा में तेजो (पीला), पद्म (गुलाबी), शुक्ल (सफेद) ये तीन रंग के पुद्गल द्रव्य उत्पन्न होते हैं । यह शुभ द्रव्य लेश्या है। जिस तरह स्फटिक रत्न के छिद्र में जिस रंग का धागा पिरोया जाये, रत्न उसी रंग का दृष्टिगोचर होता है। उसी प्रकार शुभ-अशुभ द्रव्य लेश्या के अनुरुप आत्मा में शुभ-अशुभ भाव उत्पन्न होते है। उसे भाव लेश्या कहते है। वर्तमान में फोटोग्राफी से मनुष्य के ओरा के रंग जाने जा सकते है। जिसके अनुसार व्यक्ति के आंतरिक शुभ-अशुभ भावों को भी जाना जा सकता है।
लेश्या कर्म बंध में निमित्त होने से शुभ-अशुभ लेश्या को जानकर जीवन में से अशुभ लेश्या का त्याग किया जा सकता है।
लेश्या के 6 प्रकार है- (1) कृष्ण (2) नील (3) कापोत (4) तेजो (5) पद्म (6) शुक्ल लेश्या । उपरोक्त प्रत्येक द्रव्य लेश्या स्व-नामानुसार वर्णवाली है। वर्ण के अनुसार लेश्याएँ हमारी आत्मा में भी उसी प्रकार से तीव्र, मंद, शुभाशुभ अध्यवसाय उत्पन्न करती है।
छः लेश्या की व्याख्या
1.कृष्ण लेथ्या- इस लेश्या वाला जीव शत्रुतावश निर्दयी, अति क्रोधी, भयंकर मुखाकृति वाला, तीक्ष्ण कठोर, आत्म धर्म से विमुख और हत्यारा (वध कृत्य करने वाला) होता है।
* इस लेश्या में जीव को दूसरों का नुकसान करने की तीव्र भावना होती है। यदि उसमें स्वयं का नुकसान भी हो जाए फिर भी परवाह नहीं करते अर्थात् स्व का नुकसान करके भी दूसरों को अवश्य नुकसान पहुँचाना।
दृष्टान्त - एक दिन एक किराये के मकान में रहने वाली पद्मा बेन नल के नीचे पानी भर रही थी। उतने में घर की मालकिन शांता बेन पानी भरने आई। उसने पद्मा बेन के घड़े को हटाकर अपना घड़ा भरना शुरु कर दिया। इससे पद्मा बेन को बहुत गुस्सा आया और दोनों के बीच खूब झगड़ा हुआ । झगड़े-झगड़े में बात
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