________________
"द्विदल (यानि कठोल के साथ कच्चा, दूध, दही आदि जिनमें बेइन्द्रिय जीव पैदा हो गये हैं वैसा) खाते समय बेन्द्रिय (दो इन्द्रिय वाले) जीवों की हत्या की, फिर भी तेरे दिल में दया नहीं आई।" ऐसा कहते हए असंख्य राक्षस मुझ पर टूट पड़ते हैं। मैं रो पड़ता फिर भी मेरी आवाज सुनने वाला वहाँ कोई नहीं। यहाँ आइस्क्रीम, ठण्डे पेय, शराब, तम्बाकू आदि के नशे की क्या सजा मिलती है, मालूम हैं ? यहाँ ऐसा करने वाले के मुँह में पिघला हुआ शीशा डाल दिया जाता है। पर-स्त्री को सताना तथा परस्त्री के साथ मैथुन करने वाले को लोहे की गरम लाल पुतली के साथ आलिंगन कराया जाता है। ऐसे में हमारी कैसी हालत होती होगी, उसका अनुमान लगाकर तो देखना।
मेरे दोस्त! बाजार में बिना सुकाये हुए अचार, अभक्ष्य, बासी आदि खाने का दण्ड भी सुन लो। ऐसा काम करने वाली आत्माओं के मुँह में खून व माँस डालकर खिलाते हैं। बिना छाना हुआ पानी पीने वाले को यहाँ दुर्गन्ध भरा व कीड़ों से भरा पानी पीने को दिया जाता है। तुम्हीं सोचो। कितनी भी प्यास लगी हो फिर भी ऐसा पानी कैसे पीया जा सकता है ? शिकार के शौकीन निरपराध पशुओं को तीर से भेदने वाले, माँसाहार करने वाले, कत्लखाना चलाने वाले, मुर्गी पालन करने वाले तथा मुर्गी के अण्डों से पैसा कमाने वाले यहाँ क्या सजा पाते हैं ? क्या तुम जानना चाहते हो ? तो सुनो, उन जीवों को यहाँ बार-बार काटा जाता है। काट-काटकर फिर जोड़ा जाता है। भाई, तुम्हें लगता है कि इतना तो बहुत हो गया परन्तु नहीं अभी तो बहुत कहना बाकि है। देव, गुरु जैनधर्म की निन्दा की, दूसरे धर्म के देवों को अच्छा कहा, ऐसा याद दिलाकर ये हमारी जीभ पर तेज धार वाले हथियार घुसा देते हैं। ___गुंडे के हाथ में फंसे हुए अकेले व्यक्ति की तरह यहाँ परमाधामियों के बीच बचाने वाला कोई नहीं होता। यहाँ जीव कितना भी पश्चाताप करें तो भी धर्म अथवा धर्मगुरु का आलम्बन नहीं मिल पाता। इतनी असह्य वेदना होने पर भी शरीर प्राण नहीं छोड़ता। मजबूरी है, क्योंकि यहाँ का आयुष्य पूरा किये बिना कोई मर भी नहीं सकता। जब तक आयुष्य पूर्ण न हो तब तक वेदना भोगनी ही पड़ती है। भैया ! यहाँ का आयुष्य कम से कम 10,000 वर्ष से लेकर असंख्य वर्षों का होता है। यहाँ दिन-रात भी नहीं होते जिससे रात्रि में आराम कर सके। चौबीसों घंटे परमाधामी कृत वेदना चालु रहती है। उसमें भी बार-बार के छेदन-भेदन की वेदना में यदि कोई चिल्लाए तो परमाधामियों को और ज्यादा मज़ा आता है इससे ये और अधिक दुःख देते हैं। नरक की वेदना से बचाने में कोई देव भी समर्थ नहीं है।
यह सब लिखने का अवसर भी मिलना हमें मुश्किल है पर आज प्रभु का जन्म कल्याणक है। इसलिए नरक में थोड़ा प्रकाश हुआ है और हमें भी थोड़ा आराम मिला हैं। अत: यह पत्र तुम्हें लिख पाया हूँ