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"काया का सर्वथा "त्याग करता हूँ।
9. लोगस्स (चतुर्विंशति-स्तव) सूत्र पर भावार्थ -इस सूत्र के द्वारा चौबीस तीर्थंकर भगवंतों की स्तवना एवं उनकी महिमा कही गई है। यह सूत्र मंत्र-तंत्र एवं यंत्र की आराधना से गर्भित है। 'लोगस्स उज्जोअगरे, 'चौद राजलोक (विश्व) के प्रकाशक, धम्म-तित्थ-यरे 'जिणे; धर्मतीर्थ (शासन) के स्थापक, रागद्वेष के विजेता, अरिहंते कित्तइस्सं, 'अष्टप्रातिहार्यादि से युक्त ऐसे 'चउवीसं पि'केवली ।।1।। 'चौबीसों 'केवली भगवंतों का कीर्तन करता हूँ ।।1।। 'उस मजिअं च वंदे, 'श्री ऋषभदेव श्री अजितनाथ को मैं वंदन करता हूँ। 'संभव मभिणंदणं च सुमइं च; 'श्री सम्भवनाथ श्री अभिनन्दन स्वामी श्री सुमतिनाथ 'पउमप्पहं सुपासं, 'श्री पद्मप्रभ स्वामी, श्री सुपार्श्वनाथ, "जिणं च चंद-प्पहं "वंदे, 112 ।। एवं श्री चन्द्रप्रभ जिन को ''मैं वंदन करता हूँ ।। 2 ।। 'सुविहिं च पुप्फदंतं, 'श्री सुविधिनाथ यानि श्री पुष्पदंत स्वामी , 'सीयल-'सिजंस-'वासुपुजं च; 'श्री शीतलनाथ, श्री श्रेयांसनाथ, श्री वासुपूज्य स्वामी, विमल-'मणंतं च "जिणं, श्री विमलनाथ एवं श्री अनन्तनाथ, धम्मं संतिं च 'वंदामि. ।।3।। श्री धर्मनाथ एवं श्री शान्तिनाथ ° जिन को "मैं वंदन करता हूँ।।3।। कुंथु अरं च मल्लिं 'श्री कुंथुनाथ, श्री अरनाथ, श्री मल्लिनाथ, 'वंदे 'मुणिसुव्वयं नमिजिणं च; 'श्री मुनिसुव्रत स्वामी तथा श्री नमिनाथ को मैं वंदन करता हूँ। "वंदामि 'रिठ्ठ-नेमिं 'श्री नेमिनाथ, श्री पार्श्वनाथ तथा 'पासं तह वद्धमाणं च ।।4।। "श्री वर्धमान स्वामी को मैं वंदन करता हूँ।।4 ।। 'एवं मए अभिथुआ, 'इस प्रकार मुझसे स्तुति किए गए (जिनकी स्तवना की गई है), "विहुय-'रय-'मला 'कर्मरज-'रागादिमल को दूर किया है जिन्होंने, 'पहीण-'जर- मरणा, एवं (जन्म) 'जरा (बुढ़ापा) मरण से मुक्त "चउ-वीसं पि"जिण-वरा, चौबीस भी 'जिनेश्वर