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पंचिंदिया ।।6।।
'पाँच इन्द्रिय वाले मनुष्य आदि की विराधना।।6।।
निम्न प्रकार से की हो :'अभिहया, वत्तिया, 'अभिघात किया हो (हाथ-पैर से ठुकराएँ हो) धूल से ढके हो लेसिया,
भूमि आदि पर घिसा हो, कुचले या कुछ दबाये हो, 'संघाइया, संघट्टिया,
'परस्पर शरीर द्वारा टकराये हो, शरीर द्वारा स्पर्श किया हो, 'परियाविया, 'किलामिया, "संताप-पीड़ा दी हो, 'खेद पहुँचाया हो, (अङ्ग-भङ्ग किया हो।) उद्दविया,
'मृत्यु जैसा दु:ख दिया हो, (भयभीत किया हो) 'ठाणाओ "ठाणं "संकामिया, एक स्थान से दूसरे स्थान पर 'हटाये या फिराये हो, "जीवियाओ "ववरोविया, "प्राण से रहित किये हो "तस्स "मिच्छामि दुक्कडं ।।7।। "उन सबका "मेरा दुष्कृत मिथ्या हो ।।7।। दस प्रकार की विराधना से निम्नलिखित रोगोत्पत्ति की संभावना मुझे इस प्रकार लगती है।
निमल वेगानविकी अभिहया
लात मारना घुटने से सम्बंधित रोग। वत्तिया .
धूल से ढंकना श्वास तथा घुटण सम्बंधित रोग। लेसिया
भूमि के साथ रगड़ना कुष्ठ आदि चमड़ी के रोग। संघाइया
इकट्ठा करना धक्का-मुक्की तथा भीड़ में आना जाना पड़े। संघट्टिया
स्पर्श से दु:ख देना चर्म रोग, मलेरिया, बुखार आदि। परियाविआ
थकाकर बेहोश करना टी.बी.। किलामिआ
कष्ट देना
एड्स, केन्सर। उद्दविया
भयभीत करना मानसिक बिमारी, टेन्शन आदि। ठाणाओ ठाणं संकामिआ स्थानांतर करना जगह सम्बंधित प्रोब्लम् रहती है।
एडमिशन नहीं मिलता है। जीवियाओ ववरोविआ | प्राण से रहित करना । आकस्मिक मरण होता है।
7. तस्स उत्तरी सूत्र भावार्थ - इसमें इरियावहियं सूत्र का ही अनुसंधान है। चित्तविशुद्धि के लिए कायोत्सर्ग करने का निश्चय इस सूत्र के द्वारा किया जाता है।