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'तस्स
जिस जीव विराधना का प्रतिक्रमण किया 'उसका अनुसंधान है। 'उत्तरी-करणेणं,
'विशेष -आलोचना और निन्दा के द्वारा 'पायच्छित्त-करणेणं, 'प्रायश्चित द्वारा, 'विसोहि-करणेणं, 'निर्मलता द्वारा, 'विसल्ली -करणेणं, "चित्त को शल्य रहित करने द्वारा, 'पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए, 'पापकर्मों का उच्छेद करने के लिए "ठामि काउस्सग्गं। मैं कायोत्सर्ग में "रहता हूँ।
VEDA 8. अनत्य सूत्र बराबर भावार्थ - इस सूत्र में कायोत्सर्ग के आगारों की गणना की गई है एवं कायोत्सर्ग का समय, स्वरुप और प्रतिज्ञा प्रदर्शित की है। 'अन्नत्थ,
अधो लिखित अपवाद (छूट) पूर्वक ऊससिएणं, नीससिएणं
श्वास लेने से, श्वास छोड़ने से, 'खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं ‘खाँसी आने से, छींक आने से, जम्हाई (बगासी) आने से, 'उड्डएणं, वाय-निसग्गेणं, "भमलीए । 'डकार आने से, अधोवायु छूटने से, चक्कर आने से, "पित्त-"मुच्छाए ।।1।।
पित्त-विकार से "मूर्छा आने से ।।1।। 'सुहुमेहिं अंग-संचालेहिं 'सूक्ष्म अंग संचार होने से, *सुहुमेहिं खेल-संचालेहिं 'सूक्ष्म कफ या वायु का संचार होने से, . 'सुहुमेहि दिट्ठि- संचालेहिं ।।2।। 'सूक्ष्म 'दृष्टि- संचार होने से ।।2।। 'एवमाइएहिं आगारेहिं, अभग्गो 'इत्यादि अपवाद के (सिवा), भंग न हो 'अविराहिओ 'हुन्ज मे काउस्सग्गो।।3।। खण्डित न हो ऐसा मेरा कायोत्सर्ग 'हो ।।3।। 'जाव अरिहंताणं भगवंताणं . 'जहाँ तक नमो अरिहंताणं बोल कर अरिहंत भगवंतों को 'नमुक्कारेणं न पारेमि,।।4।। 'नमस्कार करने द्वारा (कायोत्सर्ग) न पारूँ 'ताव "कायं ठाणेणं 'मोणेणं 'तब तक शरीर को एक स्थान में स्थिर कर, 'वाणी से मौन झाणेणं अप्पाणं "वोसिरामि ।।5।। रहकर एवं ध्यान द्वारा अपनी पाप पर्याय वाली