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वह वहाँ किसी को रहने नहीं देता; जिस किसी को देखता, उसे जलाकर भस्म कर देता। उस साँप के बिल के पास भगवान काउस्सग्ग ध्यान में खड़े रहे। यह देखकर साँप ने क्रोध से प्रभु को डंक मारा, तब प्रभु के पैर से दूध के समान खून निकला। यह देख कर साँप ने सोचा कि मैं जिसके सामने देखता हूँ, वह जलकर भस्म हो जाता है। इसे तो डंक मारा है, फिर भी सफेद खून निकला इसलिए यह कोई महापुरुष लगता है। यह सोचकर उसने भगवान के मुख की ओर देखा । तब भगवान ने मधुर वचन में कहा “बुज्झबुज्झ चंडकौशिक ” यह सुनकर साँप को लगा कि ऐसा रूप मैंने कहीं देखा है। इतने में उसे मूर्च्छा आ गई और जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। उसने अपना पिछला भव देखा। फिर प्रभु को तीन प्रदक्षिणा देकर कहा कि “हे करुणासागर! मुझ पर करुणा कर आप यहाँ पधारे ; अब कृपा कर दुर्गति रूप कुएँ से मेरा उद्धार कीजिये।" फिर 15 दिन का अनशन कर, चींटियों का उपसर्ग सहन करके वह सर्प मरकर 8 वें देवलोक में गया। प्रभु भी सर्प की समाधि के लिए 15 दिन तक वहीं रुके।
(5) प्रभु को कटपूतना देवी का उपसर्ग :
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त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में भगवान की एक अपमानिता रानी थी। वह स्त्री अनेक भवभ्रमण कर इस भव में कटपूतना नामक व्यन्तरी बनी थी। भगवान को देखकर उसे द्वेष उत्पन्न हुआ। उसने तापसी का रूप बनाकर अपनी जटा में पानी भरकर भगवान के शरीर पर छाँटा । सर्दी की ऋतु तो थी ही और उसमें व्यन्तरी ने मेघवृष्टि कर ठंडी हवा चलायी।
व्यन्तरी के उपसर्ग में प्रभु अडिग रहें। ऐसे धैर्यवान प्रभु को जानकर अपना अपराध खमाकर वह व्यन्तरी अपने स्थान पर चली गयी।
(6) संगम द्वारा परीक्षा
एक बार इन्द्र ने अपनी देव पर्षदा में भगवान महावीर के साधना की प्रशंसा की । इन्द्र ने कहा- "उन्हें सम्पूर्ण तीन लोक की देव शक्ति मिलकर भी विचलित नहीं कर सकती"। सभी देवों ने इस बात का समर्थन किया। प्रथम देवलोक के एक सामानिक देव संगम ने भी यह बात सुनी। उसे इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। वह बोला-“मैं उसे विचलित कर सकता हूँ” और वह भगवान को विचलित करने हेतु वहाँ से चल पड़ा। भगवान अपनी ध्यान-साधना में लीन थे। संगम देव ने उन्हें विचलित करने हेतु एक रात्रि में बीस मरणान्तिक कष्ट दिये। कभी प्रलयकारी धूलिपात किया तो कभी वज्रमुखी चींटियाँ बनाकर शरीर को काँटा। कभी बिच्छू बनकर तो कभी भीमकाय सर्प बनकर डंक मारा। कभी पैरों एवं दांतों से भगवान को कुचला तो कभी राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशला का रूप बनाकर रूदन किया।
भगवान महावीर हर कष्ट को समता से सहन कर रहे थे। संगम देव के प्रति आक्रोश के भाव उनके
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