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प्रभु खेलते-कूदते जब आठ वर्ष के हुए, तब अपनी उम्र के राजकुमारों के साथ उस देश में प्रसिद्ध आमलकी क्रीड़ा करने के लिए नगर के बाहर एक पीपल के वृक्ष के नीचे पहुँचे। फिर वे सब भाग-दौड़ का खेल खेलने लगे। दो-दो लड़के एक साथ दौड़ते। उनमें से जो पीपल के पेड़ को पहले छ लेता, वह जीत जाता और पीछे रहने वाला हार जाता। हारने वाला जीतने वाले को अपने कंधे पर बैठाकर जिस स्थान से दौड़ लगी थी, उस स्थान पर ले जाता। इस प्रकार का खेल भगवान अपनी उम्र के लड़कों के साथ खेल रहे थे। उस समय सभा में बैठे हुए सौधर्मेन्द्र ने अवधिज्ञान से भगवान का धैर्य-सत्त्व जानकर कहा कि, “वर्तमान समय में श्री वर्धमान प्रभु के जैसा अन्य कोई सत्त्वशाली नहीं है।" तब इन्द्र महाराज के वचन पर विश्वास न करते हुए परीक्षा करने के लिए एक मिथ्यात्वी देव वहाँ से उठकर जहाँ भगवान खेल रहे थे, वहाँ जा पहुँचा।
देव ने पीपल की नीचली डालियों में सर्वत्र फूत्कार करने वाले सर्प का रूप बनाया। फिर वह भगवान के सामने फणा फैला कर उन्हें डराने लगा। जिससे बच्चें डरकर भाग गये पर भगवान ने उस सर्प को अपने हाथ से उठाकर दूर फेंक दिया। इससे बच्चें पुन: आकर खेलने लगे।
फिर वह देव बालक का रूप बनाकर भगवान के साथ खेलने लगा। तब भगवान ने अत्यन्त वेग से दौड़ कर तुरन्त पीपल के पेड़ को छू लिया। इससे वह देवकृत बालक हार गया और श्री वर्धमान जीत गये। तब उस देवरूप बालक ने अपने कंधे पर भगवान को बिठाया। फिर उन्हें डराने के लिए उसने सात ताड़वृक्ष जितना ऊँचा रूप बनाया। उसे देखकर अन्य सब बालक पुन: डर कर भाग गये।
भगवान ने अपनी मुट्ठी से देव की पीठ पर वज्रप्रहार किया। इससे वह देव चीखता हुआ जमीन पर गिर गया। फिर अत्यन्त लज्जित होकर अपना रूप प्रकट कर देव ने कहा कि "हे प्रभो ! इन्द्र महाराज ने जैसी आपकी प्रशंसा की थी, आप वैसे ही धैर्यवान एवं महाबलवान हो। आप वीर नहीं वीरों के भी वीर महावीर हो।" तब से प्रभु का नाम महावीर प्रचलित हुआ। . पाठशाला में -
एक दिन शुभ मुहूर्त में माता त्रिशला और सिद्धार्थ राजा प्रभु को हाथी पर बैठाकर पढ़ाने के लिए ठाठ-बाठ से पाठशाला ले गये। इस अवसर पर इन्द्र का आसन कंपायमान हुआ। इन्द्र ने सोचा, “प्रभु तो तीन ज्ञान सहित है, अध्यापक इन्हें क्या पढ़ायेंगे।" यह सोचकर इन्द्र एक ब्राह्मण का रूप बनाकर अध्यापक के पास पहुँचे। व्याकरण संबंधी अनेक शंकाएँ प्रस्तुत की। अध्यापक उनका समाधान नहीं दे सके। तब इन्द्र ने वे ही प्रश्न भगवान को पूछे। भगवान ने नि:शंक होकर तत्काल उन प्रश्नों के उत्तर दे दिए। अध्यापक मन में सोचने लगे कि “इस छोटे बालक ने मेरे सब सन्देह दूर कर दिये।" तब इन्द्र ने अपना रूप बदलकर
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