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साहेबजी- यह तो बहुत ही अच्छी बात है क्योंकि जयणा तीन सौ वर्ष पूर्व रचे ‘धर्मसंग्रह' नामकग्रंथ में आवश्यक चूर्णि के पाठ के अधिकार में बताया है कि "उत्सर्ग मार्ग से श्रावक स्वयं के निमित्त से हिंसा करके बनाएँ हुए भोजन का त्याग करें। यदि यह नहीं हो सके तो स्वयं के निमित्त से बने हुए भोजन को ग्रहण करें; परंतु उसमें किसी भी प्रकार का सचित्त(जीवयुक्त) आहार ग्रहण न करें। यदि यह भी न कर सके तो अनंतकाय वाली वनस्पति तथा बहुबीज जैसी वनस्पति का तो अवश्य त्याग करें। कभी यदि जंगल में मार्ग भूल जाए या दुष्काल पड़ा हो तो ऐसी परिस्थिति में भी श्रावक को अचित्त (जीव रहित) भोजन ही करना चाहिए। ऐसे पदार्थ न मिलें तो उपवास कर लेना चाहिए। परन्तु यदि ऐसी शक्यता न हो और प्राणों की रक्षा के लिए भोजन करना भी पड़े तो सचित्त फल आदि खाए। परन्तु अनंतकाय-कंदमूल को तो ऐसे समय में भी न खाए।” कहने का सार इतना ही है कि जंगल और अकाल में भी जिन पदार्थों के भक्षण का शास्त्रों में निषेध किया गया है। उन पदार्थों को यदि मानव अपनी तंदरुस्ती एवं पूरे होशो-हवाश में बड़े चाव से खाए तो यह समझ लेना चाहिए कि उसके दिल-दिमाग में से नरक का भय निकल गया है। जयणा! इस बात को ध्यान में रखकर पूरी दृढ़ता पूर्वक एवं उत्साह से नियम का पालन करोगी तो मोक्ष दूर नहीं रहेगा। जयणा - साहेबजी आपकी कही बात का मैं पूर्णतया ध्यान रखूगी। पर साहेबजी.! अनंतकाय में आने वाली अदरक और हरी हल्दी सूक जाने के बाद सूंठ और हल्दी के रुप में उसका उपयोग हर कोई करता है। यहाँ तक कि साधु-साध्वी भगवंत भी झूठादि वहोरते हैं तो क्या इसी प्रकार आलू की वेफर भी खा सकते है? साहेबजी- नहीं जयणा! अदरक तथा हरी हल्दी अनंतकाय होने के कारण शास्त्रों में इन्हें खाने का निषेध किया है। परंतु ये चीज़े सूक जाने के बाद इनका उपयोग औषध के रुप में कर सकते है। पूरी जिंदगी में व्यक्ति
खा-खाकर कितनी सुंठ खायेगा और उसे खाते समय भी आसक्ति की कोई शक्यता नहीं रहती। इसके विपरीत आलू की वेफर बनाने में कितना आरंभ-समारंभ करना पड़ता है। तथा आलू की वेफर व्यक्ति एक दिन में चाहे तो एक किलो भी खा सकता है। तथा खाते समय आसक्ति होना भी निश्चित है। आलू यदि ऐसे ही पड़े रहे तो भी बारह महीने तक हरे ही रहते है अपने आप नहीं सूकते। यदि सूंठ की भी सब्जी बनती होती तो भगवान उसके लिए भी निश्चित मना करते। इन सब कारणों से आलू की वेफर खाने का निषेध किया गया है। जयणा - साहेबजी.! किन शब्दों में आपका आभार व्यक्त करूँ? आज आपने इतनी छोटी-छोटी बातें बताकर हमें दुर्गति में जाने से बचाया हैं।