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जयणा- साहेबजी.! इन सब दालों को दही के साथ मिश्रित करने पर तो बहुत सारी आईटम बनता ह जस कि कढ़ी, दही वडे आदि। तो क्या हम यह सब चीज़े खा ही नहीं सकते? साहेबजी- नहीं जयणा! दही, छाछ आदि को गरम करने के बाद इन दालों को इन के साथ मिश्रित करने पर जीवोत्पत्ति नहीं होती। जयणा- दही गरम करने के बाद जीवोत्पत्ति क्यों नहीं होती? साहेबजी- जयणा! जैसे सूके गोबर पर पानी गिरने पर जीवोत्पत्ति होती हैं पर गोबर एवं पानी दोनों अलग होने पर नहीं। वैसे ही दाल आदि के साथ दही का संयोग होने पर ही जीवोत्पत्ति होती हैं, जब दही को गरम किया जाता है तब उसमें जीवोत्पत्ति होने की शक्ति खत्म हो जाती है। जयणा- साहेबजी.! “द्विदल' की संभावना कहाँ-कहाँ पर होती है ? साहेबजी- दही-वडे, मेथी के पराठे, श्रीखंड, रायता, कढ़ी, ढोकला आदि में गरम किए बिना कच्चा दही उपयोग करने पर द्विदल की संभावना होती है। साहेबजी- जयणा! दही संबंधी कुछ विशेष बातें ध्यान रखने जैसी है। जैसे कि दूध में दही डालने पर बेक्टीरिया उत्पन्न नहीं होता लेकिन पुद्गल में परिवर्तन होता है।
जयणा यह तो हुई द्विदल की बात। अब आता है ‘चलित रस'। इसका प्रख्यात नाम है बासी पदार्थ। बासी अर्थात् जिसमें पानी का अंश रहता हो। वह चीज़ दूसरे दिन बासी हो जाने से अभक्ष्य बनती है। जैसे रोटी, ब्रेड, पुडी, इटली, भजीया, वड़ा, श्रीखंड, रसमलाई, बासुंदी, दूधपाक, समोसा, डोसा, गुलाबजामुन, जलेबी, बंगाली-मिठाई, सेका हुआ पापड़, चटनी, शरबत का ऐसन्स, कच्चा मावा आदि।
जर्मनी में अभी-अभी यह शोध किया गया है कि रात्रि में सूक्ष्म जीव भोजन में उत्पन्न होने से जैसेजैसे रात बढ़ती जाती है वस्तु एकदम कोमल (सॉफ्ट) होती जाती है। उसमें लट जैसे कोमल जीव उत्पन्न होते हैं। दूसरे दिन तक पूरा भोजन लटों का शरीर हो जाता है। इसलिए ब्रेड, बासी इटली आदि कोमल शरीर वाले जीवों की उत्पत्ति के कारण कोमल बनते हैं। जयणा - इसका मतलब यह हुआ कि आज बनाए हुए सब पदार्थ दूसरे दिन बासी ही कहे जायेंगे तो फिर हम खाखरे आदि कैसे खा सकते हैं। साहेबजी- जयणा! सूकी मिठाई, खाखरा, सेके हुए पदार्थ, तले हुए कड़क पदार्थ आदि दूसरे दिन बासी नहीं होकर उनकी काल मर्यादा के बाद अभक्ष्य होते है। जैसे कि चौमासे में 15 दिन, सर्दी में 30 दिन एवं गर्मी में 20 दिन तक चलते हैं। उसके पहले भी यदि किसी पदार्थ का स्वाद बिगड़ जाए तो वह पदार्थ अभक्ष्य
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