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भगवंत द्वारा जिनवाणी ही आप तक पहुँचाई जाती है।) अब आती है बात रात्रिभोजन एवं कंदमूल त्याग करने की। जयणा - पूजा और जिन वाणी श्रवण तक तो ठीक है लेकिन साहेबजी! भगवान ने श्रावक के Minimum level के लिए रात्रिभोजन और कंदमूल के त्याग को ही इतनी मुख्यता क्यों दी? दूसरी कई चीज़े थी जैसे कि हिंसा का त्याग, झूठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करना आदि। खाने के मामले में ही इतनी पाबंदी क्यों ? साहेबजी- जयणा! तुमने सुना ही होगा "जैसा खाए अन्न वैसा होवे मन"। इस कहावत के अनुसार किसी भी कार्य में सबसे महत्त्वपूर्ण है मन। मन को विशुद्ध रखने के लिए जरुरी है शुद्ध भोजन। यदि मन विशुद्ध होगा तो ही हम अहिंसा, सत्य आदि व्रतों का पालन कर सकेंगे। जीवन जीने के लिए मनुष्य को आहार की आवश्यकता होती है अर्थात् जीवन जीने में उपयोगी तत्त्व आहार है। शरीर को टिकाने का साधन आहार है। लेकिन आहार जब आहार संज्ञा का रुप धारण कर लेता है तब वह आत्मा को भारी नुकसान करता है। इसलिए आज की इस क्लास में हम आहार शुद्धि के बारे में विचार करेंगे।
आहार क्या है? आहार संज्ञा क्या है ? यह आहार कैसा होना चाहिए? खाने जैसा क्या है ? नहीं खाने जैसा क्या है ? ये सारे विचार करना ही आहार शुद्धि कहलाती है। __ शरीर के लिए उपयोगी एवं योग्य आहार की ही जरुरत होती है। जो शरीर को नुकसान न करे वह है उपयोगी आहार। जो आत्मा और मन को नुकसान न करे वह है योग्य आहार। * विवेक पूर्वक परमात्मा की आज्ञानुसार मात्र शरीर को टिकाने के लिए जो खाते हैं। उसे आहार कहते हैं। अर्थात् जीने के लिए खाना आहार है। * आसक्ति एवं राग पूर्वक भक्ष्य-अभक्ष्य का विवेक किए बिना खाना उसे आहार संज्ञा कहते है अर्थात् खाने के लिए जीना, यह आहार संज्ञा है।
आहार से शरीर स्वस्थ एवं अपने कार्य में समर्थ बनता है। जबकि आहार संज्ञा से शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं एवं मन में दोष उत्पन्न होते हैं। आहार संज्ञा के लोभ में जीव भक्ष्य (खाने योग्य) एवं अभक्ष्य (नहीं खाने योग्य) आहार का भी विचार नहीं करता। तथा कर्मबंध कर नरक निगोद में दुःख भोगता है। इस दुःख से मुक्त होने के लिए अभक्ष्य आहार को समझकर छोड़ना जरुरी है।
अभक्ष्य बावीस होते हैं, इन 22 अभक्ष्य में रात्रिभोजन को नरक का नेशनल हाईवे कहा गया है।
प्रभु ने रात्रिभोजन के अनेक नुकसान देखकर आत्महित के लिए रात्रिभोजन का त्याग करने की आज्ञा फरमाई है। सूर्यास्त से सूर्योदय तक जो भोजन करने में आता है उसे रात्रिभोजन कहते हैं।
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