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उत्तर
वास्तुशास्त्र
वायव्य
ईशान
दिशा यंत्र
पश्चिम
पूर्व (EAST) - शुभ पश्चिम (WEST) - अशुभ दक्षिण (SOUTH) - अशुभ उत्तर (NORTH) - शुभ
नैऋत्य
दक्षिण
अग्नि
इन्सान के जीवन में दो चीज़े प्रभावित करती है :- (1) भाग्य (2) वास्तु। 50% भाग्य एवं 50% वास्तु। यदि आपके सितारे बुलंद है और वास्तु में गड़बड़ है तो प्रयास की तुलना में नतीजे आधे मिलेंगे। इसके विपरीत यदि आपकी वास्तु सही है और ग्रह दिशा ठीक नहीं है तो भी उन्हें उतने कष्ट नहीं झेलने पड़ते जितने यदि दोनों में गड़बड़ हो तो, अर्थात् यदि वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार गृह निर्माण कराया जाए तो मनुष्य के भाग्य की स्थिति बदल सकती है। * अध्ययन दिशा :- सदैव ध्यान रखें कि पूर्व, ईशान एवं उत्तर दिशाएँ ज्ञानवर्धक होने से इन दिशाओं के सन्मुख मुख रखकर पढ़ना चाहिए । पुस्तकें हमेशा नैऋत्य दिशा में जमाकर रखें। इस दिशा के अभाव में दक्षिण या पश्चिम में रखी जा सकती है। अध्ययन कक्ष में टेबल के सामने या पास में मुँह देखने का कांच न हो... * पूजा स्थान :- घर में पूजा का कमरा ईशान में हो । परमात्मा की मूर्ति या फोटो पूर्व या उत्तर दिशा में रखे जिससे दर्शन के समय आपका मुख पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो। धूप, अगरबत्ती आदि अग्निकोण में रखें। पूजा घर का दरवाज़ा ऑटोमेटिक बंद होने वाला नहीं होना चाहिए, इस दरवाज़े पर स्प्रींग या डोर क्लोजर नहीं लगाना चाहिए तथा पूजा घर के ऊपर या नीचे के भाग में शौचालय नहीं होना चाहिए। * पूर्वजों के चित्र :- नैऋत्य कोण में लगाये । मृतात्मा के चित्र पूजन कक्ष में देवताओं के सामने न हो। * घर में सभी प्रकार के दर्पण पूर्व या उत्तर दिवारों पर हो । मुख्य दिवार पर कांच न हो। * घर में घड़ियाँ पूर्व, पश्चिम या उत्तर में लगाए। * तिजोरी उत्तर में रखें । उत्तर दिशा कुबेर का स्थान है । कुबेर देवता कभी भी कोष को खाली नहीं होने देते।