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हर घर जैन बनें
आज के इस विज्ञान प्रधान युग में बाह्य साधनों से भले ही हम प्रगति की राह पर है, परंतु पाश्चात्य संस्कृति की लालसा के कारण मनुष्य अपनी मानवता और भारतीय संस्कृति को भूलता जा रहा है। इससे आज घर-घर की स्थिति बिगड़ती जा रही है। सामान्यत: यह शिकायत बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती है कि इस वर्तमान युग में बच्चें सुनते नहीं, कहना नहीं मानते, एशन फैशन के रंग में अपनी मर्जी अनुसार करते हैं। बचपन से ही अपने सारे फैसले अपनी इच्छानुसार लेने के आदी हो जाते हैं । यहाँ तक कि बड़े हो जाने पर लव- मेरे जैसे बड़े-बड़े फैसले भी अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध या उनकी अनुमति बिना ही कर लेते हैं। इसके परिणाम स्वरुप पूरा घर बिखर जाता है या फिर उन्हें पूरी जिंदगी संघर्ष करना पड़ता है।
प्रश्न यह उठता है कि विज्ञान की दृष्टि से हम पिछले ज़माने से कई कदम प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं तो फिर मानवता, सहयोग, सेवा, कर्तव्य और समर्पण की भावना में उतने ही पीछे क्यों जा रहे हैं ? आज के युग में श्रवणकुमार जैसे पुत्र, भरत जैसे भाई, राम जैसे पति के दर्शन भी दुर्लभ हो गये हैं। ये सब महापुरुष हमारे अतीत का हिस्सा बनते जा रहे हैं।
फिलहाल हमारे आदर्श तो टी. वी. सिनेमा के हीरो-हीरोईन बन गए हैं। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? यह बदलाव क्यों ? इसका मूल कारण क्या? क्यों हमारी वर्तमान पीढ़ी माता- -पिता के प्रति अपने कर्तव्यों से पीछे हट रही है? यदि आप इसका जवाब जानना चाहते हैं तो इसका एकमात्र जवाब यही है कि वर्तमान युग के बच्चों में संस्कारों का नितांत अभाव। आज की फास्ट-फॉरवर्ड लाईफ में सामान्यतया हर माता-पिता की भी यही इच्छा होती है कि उनके बच्चें मॉर्डन लाईफ स्टाईल के हिसाब से चलें । जहाँ संस्कारों का कोई नामो-निशान ही नहीं है।
इसके विपरीत यदि जन्म से संस्कारों का बीजारोपण बच्चों में किया जाए तो उपरोक्त एक भी समस्या जीवन में घटित नहीं होगी। अब ये संस्कार कब, कहाँ, कैसे, किसलिए दिए जाए उस पर हम एक नज़र करेंगे। जीवन में संस्कारों का बीजारोपण कितना महत्त्वपूर्ण होता है उसे एक काल्पनिक कहानी के माध्यम हम देखेंगे।
कहानी के मुख्य पात्र में जैन परिवार की दो सहेलियाँ है - सुषमा और जयणा । जैन परिवार की होने के बावजूद भी दोनों में जैन धर्म के अनुरुप संस्कार नहीं थे। दोनों की लॉईफ स्टाईल थोड़ी अलग थी। जयणा अपनी इच्छानुसार थोड़ा बहुत धर्म करती थी जैसे आठम-चौदस को रात्रिभोजन का त्याग करना, मंदिर
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