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चाहे एक दिन का छोटा बालक हो फिर भी साध्वीजी उसे नहीं छूते। ब्रह्मचर्य की नव-गुप्ति का पूर्णतया पालन करना। 5. परिग्रह कात्याग- साधु के उपकरण के सिवाय पैसा, सोना, चाँदी, घर, दुकान, पुत्र, परिवार, बर्तन आदि किसी भी प्रकार की सामग्री नहीं रखनी। कोई सोने (सुवर्ण रत्न) की माला वहोराने आ जाए तो भी उस पर ममत्व नहीं रखकर मना कर देना।
वर्तमान में जहाँ पैसे के बिना एक क्षण भी नहीं जी सकते, वहाँ ये मुनि एक दमड़ी भी अपने पास नहीं रखते। फिर भी इनके चेहरे की प्रसन्नता श्रीमंत की तुलना से हज़ार गुणा अधिक देखने को मिलती हैं। माना कि आत्मानंद की अपेक्षा से साधु प्रसन्न चित्त रह सकता है, लेकिन प्रश्न आता है कि पैसे के बिना जीवन निर्वाह में उपयोगी रोटी-कपड़ा एवं मकान कैसे मिल सकते हैं?
इसका जवाब है - प्रभु शासन की लीला न्यारी है। प्रभु ने चतुर्विध संघ की स्थापना की है। श्रावकश्राविका के लिए प्रभु ने गुरु भक्ति का महत्त्व समझाकर खूब अहोभाव से गोचरी-पानी-वस्त्र-वसति आदि सुपात्र दान से विपुल कर्म निर्जरा बताई, तो साधु-साध्वीजी को घर-संसार, ऋद्धि-समृद्धि का त्याग कर नि:स्पृह जीवन जीने का उपदेश दिया है। अतः साधु महात्मा नि:स्पृह भाव से मात्र संयम में उपकारी हो, उतनी निर्दोष (श्रावक के स्वयं के लिए ही तैयार की गई एवं जिसमें साधु का कोई उद्देश्य भी न हो ऐसी) गोचरी, वस्त्र एवं वसति का लाभ देकर श्रावकों को कृतार्थ बनाते हैं। साधु महात्मा एक ही घर से संपूर्ण आहार नहीं वहोरते। लेकिन जिस प्रकार गाय थोड़ी-थोड़ी घास चरती है उसी प्रकार साधु महात्मा भी घर-घर से थोड़ा-थोड़ा आहार ही लेते हैं। इसलिए साधु के आहार को गोचरी कहते हैं। साधु-साध्वीभगवंतों कीभाषा:गलतवाक्य
सहीवाक्य 1. म.साहेब झाडू निकालते हैं।
म.साहेब डंडासन से काजा निकालते हैं। 2. म.साहेब कपड़ा धोते हैं।
म.साहेब काप निकालते हैं। 3. म.साहेब पानी ढोलते हैं।
म.साहेब पानी परठते हैं। 4. म.साहेब गादी पर सोते हैं।
म.साहेब संथारा करते हैं। 5. म.साहेब खाना लेने जाते हैं।
म.साहेब गोचरी वहोरने जाते हैं। 6. म.साहेब खाना खाते हैं ।
म.साहेब गोचरी वापरते हैं। 7. म.साहेब खाना लेने आओं।
म.साहेब गोचरी वहोरने पधारों।