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नवपद (नवकार) जहाँ नवकार है वहाँ सत्कार, आवकार, पुरस्कार, नमस्कार आदि हैं। जहाँ नवकार नहीं है वहाँ तिरस्कार, धिक्कार, अहंकार, ममकार आदि हैं। यह शाश्वत मंत्र है। इसके एक-एक अक्षर पर अनेक देव अधिष्ठित है, यह सर्व मंगल में प्रथम है। इसमें नौ की संख्या अखंड है। नौ को किसी भी संख्या से गुणा करने पर भी 9 का अंक अखंड रहता है। जैसे 9x1 = 9, 9x2 = 18, 1+8 = 9, 9x3 = 27, 7+2 = 9, 9x4 = 36 3+6 = 9, 9x5 = 45, 4+5 = 9.... आदि। नवकार के नवपद 1. अरिहंतः अरि-शत्रु (राग-द्वेषादि) का हंत=नाश करने वाले। अरिहंत को तीर्थंकर, जिनेश्वर, परमात्मा, भगवान, वीतराग, देवाधिदेव भी कहते हैं। इनका वर्ण सफेद होता है। अरिहंत के बारह गुण होते हैं वे इस प्रकार है :(1) अशोकवृक्ष : यह वृक्ष प्रभु के शरीर से 12 गुणा ऊँचा, एकदम घटादार लाल पत्तों से युक्त एक योजन विस्तार वाला होता है। (2) सुरपुष्प वृष्टि : देवता सतत पाँच रंग के फूलों की जानु तक वृष्टि करते हैं और वे फूल सीधे एवं स्वस्तिक आदि अलग-अलग आकार में गिरते हैं। (3) दिव्यध्वनि : प्रभु मालकोष आदि राग और अर्धमागधी भाषा में देशना देते हैं। उस देशना को एक योजन तक एक समान आवाज़ में फैलाने वाली यह दिव्य ध्वनि होती है। (4) चामर : चारों दिशाओं में प्रभु के दोनों तरफ इंद्रों द्वारा रत्न जड़ित उज्जवल चामर ढाले जाते हैं। (5) सिंहासन : चारों दिशाओं में रत्नों से जड़ित सिंह की आकृति वाला सुवर्णमय एक-एक सिंहासन होता है। (C) भामंडल : प्रभु का शरीर हज़ारों सूर्य से भी अधिक तेजस्वी होने से हम प्रभु का मुख देख नहीं पाते। अत: उस तेज का संहरण करने के लिए प्रभु के पीछे भामंडल होता है। (7)देवदुंदुभि:देवता का वाजिंत्र। यह लोगों को सूचना देता है कि, “हे भव्य जीवों ! तुम यहाँ आओ, तीन लोक के नाथ यहाँ बिराजमान है। उनकी सेवा करों।" (४) तीनछत्र: परमात्मा तीन लोक के नाथ होने से प्रभु के मस्तक पर सुवर्णमय रत्न जड़ित तीन छत्र होते हैं।
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