Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 9
________________ शकटमुखी शब्द शकटमुखी-विजयाकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर । शतमुख-भगवान् वासुपूज्यका शासक यक्ष--दे. तीर्थकर।।। -दे. विद्याधर। शतहद-विजयाकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । शक वंश- देवकी गागावली अनसार यह एक शतानीक-कुरुवंशी राजा था। पांचाल देशका राजा तथा जनमे. छोटी सी जाति थी । इस जातिका कोई भी एकछत्र राज्य । जयका पुत्र था। प्रवाहण जेबलि का पिता था। समय-ई. पू. नहीं था। इस वंशमें छोटे-छोटे सरदार होते थे जो धीरे-धीरे १४२०-१४००-दे. इतिहास/३/३ । करके भारतवर्ष के किन्ही-किन्हीं भागोंपर अपना अधिकार जमा बैठे शतार-१, कल्पवासी देवोंका एक भेद-दे, स्वर्ग/३ । २, कल्पथे. जिसके कारण मौर्यवंशी विक्रमादित्यका राज्य छिन्न-भिन्न हो। __ स्वाँका ग्यारहवाँ पटल-दे. स्वर्ग/५/२। .. गया था। भृत्यवंशी गौतमी पुत्र सास्कणी (शालिवाहन ) ने वी. शत्रुजय-विजया की उत्तर श्रेणीका एक नगर-दे. विद्याधर । नि. ६०५ में शक संवत् प्रचलित किया था। जो पीछेसे शक संवत् शत्रु-सच्चा शत्रु मोह है-दे. मोहनीय/१/५ । कहलाने लगा। इसके सरदारोंका नाम इतिहास में नहीं मिलता है। शत्रुघ्न-१. ह. पु./सर्ग/श्लोक-पूर्वभव भव सं.३ में भानुदत्त सेठहाँ, आगमकारोंने उनका उल्लेख किया है जो निम्न प्रकार है का पुत्र शूरदत्त था (३४/६७-६८) फिर मणिचूल नामक विद्याधर १. पुष्यमित्र वी. नि. २५५-२८५; ई.पू. २७१-२४६ हुआ (३४/१३२-१३३) पूर्व भवमें गंगदेव राजाका पुत्र सुनन्द था २. वसुमित्र ... २८५-३१५, , , २४६-२११ (३४/१४२) वर्तमान भवमें वसुदेवका पुत्र कृष्णका भाई था (३४/३) । ३. अग्निमित्र ,, .. ३१५-३४५, , , २११-१८१ कंसके भयसे जन्मते ही किसी देवने उसको उठाकर सुदृष्टि सेठके घर ४. गर्दभिक्ल,,,, ३४५-४४५, , ,, ९८१-८१ पहुँचा दिया (३४/७)। दीक्षा ग्रहणकर घोर तप किया (५६/११५-१२०) ५. नरवाहन ,, ,, ४४५-४८५, , , ८१-४१ अन्तमें गिरनारसे मोक्ष प्राप्त किया (६५/१६-१७) । २. प. पु./सगे। (विशेष-दे, इतिहास/मगधके राज्य वंश) नरवाहन की वी. नि, श्लोक सं.दशरथका पुत्र तथा रामका छोटा भाई था (२५/३५) मधु. ६०६ में शालिवाहन द्वारा हारनेको संगतिके लिए भी-दे. इति- को हराकर मथुराका राज्य प्राप्त किया (७६/११६)। अन्तमें दीक्षा हास/३/४। ग्रह्ण की (११४/३८)। शक संवत्-दे. इतिहास/२/४,१० । कोश 1/परिशिष्ट/१३ 1 शनि-१. एक ग्रह-दे, ग्रह। २. इसका लोकमें अवस्थान-दे. शक्ति-शक्तिके भेद व लक्षण-दे. स्वभाव । ज्योतिष लोक । शन्मुख-भगवान् वासुपूज्यका शासक यक्ष-दे, तीर्थकर/५/३ । शक्तिकुमार-गुहिलोत वंशका राजा था। पाशुपत धर्मका अनुयायी था। परन्तु कुछ-कुछ जैनधर्मका भी विश्वास करता था। शबर-मीमांसा दर्शनमें जैमिनी सूत्रके मूल भाष्यकार शाबरसमय-ई. श. १०-११ । (जैन साहित्य इतिहास/पृ. २५६ प्रेमी जी) भाष्यके रचयिता । समय-ई. श. ४-दे. मीमांसा दर्शन । (ति. प./प्र.CA.N. Up.) शबल-असुर भवनबासी देव-दे. असुर । शक्ति तत्त्व-दे. शैव दर्शन। शब्द-1. शब्द सामान्यका लक्षण शक्तितस्तप-दे, तप । शक्तितस्त्याग-दे. त्याग। स. सि./२/२०/१७८-१७४/१० शब्दात इति शब्दः । शब्दनं शब्द इति । - जो शन्द रूप होता है वह शब्द है। और शब्दन शब्द है। शक्ति भूपाल-बंश वंशका राजा था। इसके राज्यमें ही पद्म- (रा. वा./२/२०/१/१३२/३२)। नन्दीने जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिकी रचना की थी। सम्भवतः गुहिलोत वंश- . रा. वा./५/२४/१/४८५/१०। शपत्यर्थमाहयति प्रत्याययति, शप्यते का शक्तिकुमार ही यह शक्ति भूपाल था। समय-ई.१० का अन्तिम येन, शपनमात्र वा शब्दः । -जो अर्थको शपति अर्थात कहता है, चरण (ज. प./प्र. १४ A.N. Up., हीरालाल)। जिसके द्वारा अर्थ कहा जाता है या शपन मात्र है, वह शब्द है। शक्यप्राप्ति-न्या. सू./टी./१/१/३२/३३/२३ प्रमातुः प्रमाणानि ध.१/१,१,३३/२४७/७ यदा द्रव्यं प्राधान्येन विवक्षितं तदेन्द्रियेण द्रव्य मेव संनिकृष्यते, न ततो व्यतिरिक्ताः स्पर्शादयः केचन सन्तीति प्रमेयाधिगमार्थानि सा शक्यप्राप्तिः । -प्रमेयोंके जानने के लिए जो प्रमाताके प्रमाण हैं, उसीको शक्यप्राप्ति कहते है। एतस्यां विवक्षायां कर्मसाधनत्वं शब्दस्य युज्यत इति, शब्द्यत इति शब्दः। यदा तु पर्यायः प्राधान्येन विवक्षितस्तदा भेदोपपत्तेः शक्रपुरी--विजयाकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर ।-दे. विद्याधर । औदासीन्यावस्थितभावकथनाद्भावसाधनं शब्दः शब्दन शब्द इति । शक्रादित्य-बौद्ध मतानुयायी राजा था। इसने नालन्दामें मठ - जिस समय प्रधान रूपसे द्रव्य विवक्षित होता है उस समय बनवाये थे। समय-ई. श. इन्द्रियों के द्वारा द्रव्यका हो ग्रहण होता है। उससे भिन्न शतक-(दे. परिशिष्ट)। स्पर्शादिक कोई चीज नहीं है । इस विवक्षामें शब्दके कर्मसाधनपना शतकचूणि-दे.णि तथा कोश II का परिशिष्ट । बन जाता है जैसे शब्द्यते अर्थात जो ध्वनि रूप हो वह शब्द है। शतपदा-रुचक पर्वत निवासिनी दिक्कुमारी देवी-दे. लोक५/१३ ॥ तथा जिस समय प्रधान रूपसे पर्याय विवक्षित होती है, उस समय द्रव्यसे पर्यायका भेद सिद्ध होता है अतएव उदासीन रूपसे अवस्थित शतपर्वा-एक विद्या-दे. विद्या। भावका कथन किया जानेसे शब्द भावसाधन भी है जैसे 'शब्दन शतभागा-भरत क्षेत्रस्थ आर्य खण्डकी एक नदी-दे० मनुष्य/४ । शब्द:' अर्थात् ध्वनि रूप क्रिया धर्मको शब्द कहते हैं। शतभिषा-एक नक्षत्र-दे० नक्षत्र । पं. का./प्र.प्र./७६ बाह्यश्रवणेन्द्रियावलम्बिती भावेन्द्रियपरिच्छेद्यो शतमति-म पु./स. श्लोक-ऋषभदेवके पूर्व (/२००) भबके महाबल ध्वनिः शब्दः । = बाह्य श्रवणेन्द्रिय द्वारा अवलम्बित, भावेन्द्रिय द्वारा जानने योग्य ऐसी जो ध्वनि वह शब्द है। की पर्यायका मिथ्यादृष्टि मन्त्री था (४/९६१) नैरात्मवादी था * कायोत्सर्गका एक अतिचार-दे. व्युत्सर्ग/१ । (४/४४) मर कर नरक गया (१०/२२) । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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