Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 8
________________ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश [ क्षु० जिनेन्द्र वर्णी ] . ___II/ T [ श] शंख वज्र-विजया पर्वतकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे, विद्याधर। शंकर वेदांत-इसका अपरनाम ब्रह्माद्वैत-दे० वेदान्त।२।। शंखवर-मध्यलोकका बारहवाँ द्वीप व सागर-दे. लोक/५/१। शंकराचार्य-ब्राह्मण जातिके थे। हिन्दू धर्मके (विशेषतः अद्वैत- शंखवर्ण-एक ग्रह-दे. ग्रह। वादके ) महान् प्रचारक थे। गौड़पादके शिष्य गोविन्दके शिष्य थे। ब्रह्माद्वैतमतके संस्थापक थे। केवल २८ वर्ष की आयु थी। ई,७८८ शंखाक शंखाकार आकृतिमें मालाबार में जन्म हुआ था। मृत्यु ई.८१६। । ज. प./प्र.८५ । क्षेत्रफल - दे. गणित/ शंकरानंद-बहत बडा तार्किक व नैयायिक एक बौद्ध साधु था। कृति-अपोहसिद्धि, प्रतिबन्धसिद्धि । समय-ई.८१० (स्याद्वाद शंखावत योनि-दे. योनि । सिद्धि । प्र. पृ. २० पं. दरबारीलाल )। शंब-ह. पु./सर्ग/श्लोक-पूर्व भव सं. ७ में शृगाल ( ४३/११५ ) फिर शका-१. नि. सा./ता. वृ./५ शंका हि सकलमोहरागद्वेषादयः । वायुभूति ब्राह्मण (४३/१००); फिर सौधर्म स्वर्ग में देव (४३/१४६ ) - शंका अर्थात् सकल मोहराग द्वेषादिक ( दोष)। चौथेमें मणिभद्र सेठका पुत्र (४३/१४६) फिर सौधर्म स्वर्ग में देव पं.ध./उ./४८१ शंका भी साध्वस भीतिर्भयमेकाभिधा अमी। शंका, (४३/१५८); फिर कैटभ नामक राजपुत्र ( ४३/१६० ) फिर पूर्व भवभी, साध्वस, भीति और भय ये शब्द एकार्थ वाचक हैं। में अच्युतेन्द्र ( ४३/२१६ ) वर्तमान भवमें जाम्बवती रानीसे कृष्णका द. पा./पं. जयचन्द/२/१० शंका नाम संशयका भी है और भयका पुत्र था (४८/७) बन क्रीड़ा करते समय वनमें पड़े कुण्डोंमें से शराब भी। और भी दे, निशंकित। २. सामान्य अतिचारका एक पी ली (६१/४६ ) जिसके नशेमें द्वीपायन मुनिपर उपसर्ग किया (६१। भेद-दे. अतिचार । ३. लघु व दीर्घ शंका विधि- दे. समिति/१/७ ४६-५५)। द्वारका भस्म होने की घटनाको जान दीक्षा ग्रहण की। ४. सम्यग्दर्शनके शंका अतिचार व संशय मिथ्यात्व में अन्तर-दे. (६१/६८) अन्तमें गिरनारसे मोक्ष प्राप्त किया ( ६५/१६-१७ ) । संशय । शंबरदेव-भगवान पार्श्वनाथका पूर्व भवका भाई था। इसने भगशंकाकार शिखा-Super-incumbent cone (ध./प्र.५ वान् पर घोर उपसर्ग किया (म.पू./७३/१३७ ) अन्तमें परम्पराका और प्र./२८)। छोड़कर भगवानकी स्तुति की (७३/१६८) यह कमठका उत्तरका शंकित-आहारका एक दोष-दे, आहार/II/४/४ । नवाँ भव है-दे० कमठ। शंकित विपक्ष वृत्ति हेत्वाभास-दे. व्यभिचार । क-प. पु./४३/श्लोक-रावणको बहन चन्द्रनखाका पुत्र था। सुर्यहास खड्गको सिद्ध करनेके लिए १२ वर्षका योग वंशस्थल पर्वत क -Frustrum of cone (ज. प./प्र. १०८)। पर धारण किया (४५-४७) वनवासी लक्ष्मणने खड्गकी गन्धसे शख-१, चक्रवर्तीकी नवनिधियों में से एक-दे. शलाकापुरुष/२ । आश्चर्यान्वित हो, खड्गकी परखके अर्थ शम्बूक सहित वंशके २. प्रतिमाके १०८ उपकरणों में से एक-दे, चैत्य/६/११ । ३. यादव- बीड़ेको काट दिया (४९-५५) यह मरकर नरकमे गया। बंशी कृष्णका २३वाँ पुत्र-दे. इतिहास१०/१०% ४. लवण समुद्र में शक-इसका वर्तमान नाम बैक्ट्रिया है। (म. पु./प्र. ५२)। स्थित एक पर्वत-दे. लोका/६५. अपर विदेहस्थ एक क्षेत्र-दे. लोक५/२६. आशीविष वक्षारका एक कूट व उसका रक्षक देव शकट-ध.१४/५, ६,४१/३८/७ लोहेण बद्धणेमि-तुंब महाचक्का दे. लोक/31 लोहबद्धहयपेरंता लोणादीणं गरुअभरुव्वहणक्षमा सयडा नाम । शंख परिणाम-एक ग्रह-दे. ग्रह । -जिनकी धुर गाड़ीकी नाभि और महाचक्र लोहेसे बंधे हुए हैं, जिनके हय पर्यन्त लोहसे बँधे हुए है, जो नमक आदि भार ढोने में शंख रत्न-रुचक पर्वतस्थ एक कूट-दे, लोकाश१३. । समर्थ हैं वे शकट कहलाते हैं। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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