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जैनधर्मसिंधु.
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मल्लिनाथ ने पार्श्वनाथ, दो नीला निरख्या ॥ मुनि सुव्रत ने नेमनाथ, दो जन सरिखा ॥२॥ शोले जिन कंचनसमा ए, एवा जिन चोवीश ॥ धीरविमल पंडित तपो, ज्ञान विमल कहे शिष्य ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री चोविश जिन समकितजव गए ॥ तीनुं चैत्यवंदन ॥
॥ प्रथम तीर्थंकर तथा हुवा, जब तेर कही जे ॥ शांतिता जव बार सार, नव जव नेम लहीजे ॥ १ ॥ दश जव पास जिणंदने, सत्तावीश श्रीवीर ॥ शेष तीर्थंकर त्रिहुं जवें, पाम्या जवजल तीर ॥२॥ ज्यांथी समकित फरसीयुं, त्यांथी गणीएं तेह || धीर विमल पंडित तणो, ज्ञान विमल गुण गेह ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ अथ चन्दशें बावन गणधरनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ गणधर चोराशी कह्या, वली पंचाएं बेक ॥ दोय अधिक ग सय गणा, शोल अधिक शत एक ॥ १ ॥ शत सुमतिने गणधरा, एक सय अधिका सात || पंचाणु त्राणु तथा अडसी इगसी व्रात ॥२॥ बोहोतेर बासव सगवन, पंच्चास तैंतालीस ॥ बत्तिस पण तिस कुंथने, अर गणधर तेत्री ॥ ३ ॥ अडवी स अष्टादश कह्या, नमि सत्तर गणधार ॥ एकादश दश शिव गया, वीर तथा अगीयार ॥ ४ ॥ रिख जादिक चोविशना, एक सहस्स सय चार ॥ अधि केरा बावन का, सर्व मली गणधार ॥ ५ ॥ श्रय