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अष्टमपरिच्छेद.
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जिससें चोर नाम पडे, और राजदंग होवे, ऐसा धन वर्जु, अर्थात् चोरी वर्ज्. । इतितृतीयत्रतम् ।
दो करण तीन योगसें देवतासंबंधि, एकविध त्रिविधें करी तिर्यंच संबंधि, मैथुनका नियम करता हुं. । ए । अनुभव करके स्तंजसमान ब्रह्मत्रतको अपने मन में धारण करूं, और जावजीव मनुष्य संबंधि मैथुनकायाकरके वर्ज्. । १० । परनारीको, और परपुरुषको ( स्त्री व्रतग्राहिता घ्याश्रित ) वर्जुइनके उपरांत अन्य क्रियाकी मुक्कों जयणा । इति चतुर्थव्रतम् ॥
नव प्रकार के परिग्रह में परिग्रहकी संख्याका प्रमाण यह है. । ११ । इतने मात्र रूपय्ये, इतने मोहोर, इतने मात्र गिति । १२ । इतने गिए तिमें रूपय्ये, यह गणिमवस्तुका ग्रहण है. इतनी वस्तु तोलमे और मापसें इतनी वस्तु | १३ | हाथ अंगु लसें मेय वस्तुका इतने प्रमाण मात्र मुजको संग्र ह करना कल्पे, तथा दृष्टिसें देखके जिनका मोल करा जावे ऐसे पदार्थ इतने रुपयोंके मोलके रखने. । १४ । इतनी खांमी अन्नकी एक वर्षमें रख नी, इतनी मुजको परिग्रह में भूमि रखनी कल्पे; इतने पुर, इतने गाम, इतने हाह, इतने घर, चौर इतने प्रमाण क्षेत्र, मुजको कल्पे. । १५ । इतने सेर, वा इतने तोले प्रमाण सोना, इतना मात्र रूपा,