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अष्टमपरिच्छेद.
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आप पारणा करूं; जो सुविहित साधुओं का योग न होवे तो, दिशावलोकन करके जोजन करूँ. । ४१ । इतिद्वादशत्रतम् ॥
यह द्वादश व्रतरूप श्रावकधर्म, पूर्वोक्त विधिसें पालुं विना बाएया जलका पान और स्नान, मरणां तमें जी न करुं । ४२ । कंदर्प, दर्प, थूकना, सोना, चार प्रकारका श्राहार करना, विकथा, कलद, इत्या दि जिनमंरुपमें वर्जु । ४३ ।
अमुक महाग में, अमुक गुरु सूरिके संतानमें, अमुक के शिष्य के पास, अमुक सूरिके पादांतमें. ४४ । अमुक संवत्सरमें, अमुक मासमें, श्रमुक पक्षमें, अमुक तिथिमें, अमुक वारमें, अमुक नक्षत्र में, अमुक नगर में. । ४५ । मुकका पुत्र, अमुक नामका श्रावक, यहां गृहस्थधर्म ग्रहण करता है. श्रमुककी पुत्री श्रामुककी जार्या, अमुक नामकी श्राविका, वा व्रत ग्रहण करती है. । ४६ ।
नवरं क्षत्रियके वास्ते प्राणातिपात स्थान में प्रथम व्रतमें 8७ । ४८ । यह दो गाथा, अधिक जाननी । युद्ध में, कोइ गौको चुरा लेजाता होवे तिसके हटानेमें, चैत्य, गुरु, साधु, संघको उपसर्ग देनेवा लेको हटानेमें, तथा पुष्टके निग्रहमें, जीवके वध हुए मुऊको दोष नही । ४५ । जनोंके, और देशके रक्षणवास्ते सिंह, व्याघ्र, शत्रुओंके हननेमें मुफको
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