Book Title: Jain Dharm Sindhu
Author(s): Mansukhlal Nemichandraji Yati
Publisher: Mansukhlal Nemichandraji Yati

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Page 835
________________ श्रष्टमपरिछेद. G०१ सुरपतिहृदयावतीर्णमंत्रप्रचुर, कलाविकलप्रकाश नावन् ॥ जिनपतिचरणानिषेककाले, कुरु बृहती वर विघ्न विप्रणाशम् ॥१॥ “॥ ॐ गुरो इह शेषं पूर्ववत् ॥” इति गुरु पूजनम् ॥ ७॥ निजनिजोदययोगजगत्रयी, कुशल विस्तरकारण तां गतः ॥ नवतुकेतुरनश्वरसंपदां, सततहेतुरवारि तविक्रमः॥१॥ __“॥ ॐ केतो हा शेषं पूर्ववत् ॥” इति केतु पूजनम् ॥ ए॥ कृष्ण सितकपिलवर्ण, प्रकीर्णकोपासितांघ्रियुग्मस दा॥ श्रीक्षेत्रपाल पालय, नविकजनं विघ्नहरणेन॥१॥ “ ॥ ॐ क्षेत्रपाल इह शेषं पूर्ववत् ॥” इति देत्रपालपूजनम् ॥ १०॥ __ पीडे गंध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीपसे पूर्व कहे मंत्रोंसेंही जिनप्रतिमाकी पूजा करे. पीछे हाथमें वस्त्र लेके वसंततिलकावृत्तपाठ पढे। त्यक्त्वाखिलार्थवनितादिकनूरिराज्य निःसंगतामुपगतो जगतामधीशः ॥ निगुर्जवन्नपि स वमणि देवदूष्य मेकं दधाति वचनेन सुरेश्वराणाम् ॥१॥ यह पढके वस्त्र चढावे. इत्ति वस्त्रपूजा ॥ पीछे नानाविध खाद्य, पेय, लक्ष्य, लेह्यसंयुक्त १०१

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