Book Title: Jain Dharm Sindhu
Author(s): Mansukhlal Nemichandraji Yati
Publisher: Mansukhlal Nemichandraji Yati

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Page 853
________________ श्रष्टमपरिवेद. १५ तात्कालिक मरणके चिन्द जाणने ॥ रोगी दर्पणमें अपना मस्तक न देखे तो अवश्य मरे. जरणी, मघा, अश्लेषा, मूल, कृत्तिका, जेष्टा, आओ, शत निषा, तीनपूर्वा, यह नक्षत्रमे मांदा पडेतो रोगी न बचे. जिस्का बलगम चिकना होके गलेसें बुटे नही तो समजो कि अब श्रायुष्य बिलकुल कम हे. जिस्कों बीकानेके साथ जामा पेसाब हो जाये तो, जिस्की जबानपर कांटे आ जावे, वा काली पमजावे व अबाज न देशके तो, जानो तीन रोजका जीनाहे. जिस्की नेत्रोंकी एकवा दोनोहि पुतली फिरजाय वा नेत्रो से दिखाई न देवे तो जानो कि मरना नजीक हे. जिस्के हाथ फेरके वीसोनख काले पमजाय, हाथ पेरमें ठंमार होके शिरमे गरमी बाजाय तो जानो मरना नजीक आया. जिस्का उच्चार शुरु न हो, नेत्रोमें रोशनी नहो, कानोंसे सुनना, नाकसे खुश बो लेना, बंध हो जाय,अनामीका उंची नउपड शके, तो जानोकी अवश्य अपना काल समय नजीक हे. यद्यपि यह लक्षणोंसे प्रायः मरणका निश्चय होजोता हि हे तथापि कोइ अतिशय ज्ञानी वा देवादिकोंके यथातथ्य वचन सिवाय अनागर अपशन उच्चराने कि आज्ञानहीहे. इसलिये सागारी अनशन कराना उचितहे) संघ की, ग्लानके संबंधियोंकी, तथा नगरके राजादिकी अनुमति लेके, अनशनका उच्चार कराना.

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