Book Title: Jain Dharm Sindhu
Author(s): Mansukhlal Nemichandraji Yati
Publisher: Mansukhlal Nemichandraji Yati

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Page 857
________________ अष्टमपरिजेद. २३ धर्मदेशना करे। पीने स्वस्वकार्यमें सर्व तत्पर होवे। अंत्य आराधनासें लेके, शोक, दूर करनेतक मुह "दि न देखना, अवश्य कर्त्तव्य होनेसें. । यमलयो गमें, त्रिपुष्करयोगमें, मृगशिर । चित्रा । धनिष्ठा । मंगल । गुरु । शनि । । १२ । ७। इतित्रयाणां योगे यमलयोगः ॥ कृतिका । पूर्वाफाल्गुनी । विशा खा । उत्तराषाढा। पूर्वानाउपदा । पुनर्वसु । मंगल। गुरु । शनि ।।१५।। इति त्रिपुष्करयोगः ॥ कृति का । विशाखा । जरणी। इति मिश्रनदत्राणि ॥ जर णी। मघा। पूर्वाफाल्गुनी पूर्वाषाढा । पूर्वानाउपदा इति क्रूरनदात्राणि ॥ रोहिणी । उत्तराफा । उत्त राषा । इति ध्रुवनदात्राणि ॥ आजा, मूल, अनुरा धा, मिश्र, क्रूर और धूव, इन नक्षत्रोमें प्रेतक्रिया नही करनी । धनिष्टासें लेके पांच नक्षत्रोंमें तृणका ष्टादि संग्रह नही करना । शय्या, दक्षिण दिशकी यात्रा, मृतक कार्य, गृहोद्यम, (घर बनाना) आदि नही करनाः । रेवती, श्रवण, अश्लेषा, अश्विनी, पुष्प, हस्त, स्वाति मृगशिर, इन नक्षत्रोंमें, और सोम, गुरु, शनी, इन वारोंमें प्रेतकर्म करना बुद्धि मान् कहते हैं: । स्वस्व वर्णके अनुसार जन्ममरण का सूतक एकसदृश होता हैं ब्राह्मण,कत्रीय,वैश्यकों पुरुषोका दश और स्त्रीका एकादश दिन सूतक होता हे. परदेशका जन्म मरण सूतक धार्मिक

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