Book Title: Jain Dharm Sindhu
Author(s): Mansukhlal Nemichandraji Yati
Publisher: Mansukhlal Nemichandraji Yati

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Page 834
________________ ថិ០០ जैनधर्मसिंधु. विघ्नहते । नौमजिनस्नपनेऽस्मिन् विघटय विघ्नागमं सर्वम् ॥१॥ ॥ ॐ मंगल शह० शेषं पूर्ववत् ॥” इति मंग लपूजनम् ॥३॥ .. अस्तांहः सिंहसंयुक्त, रथ विक्रममंदिर ॥ सिंहिकासुत पूजाया, मत्र संनिहितो जव ॥१॥ __ “ॐ राहो हा शेषं पूर्ववत् ॥” इति राहु पूजनम् ॥४॥ ' फसिनीदल लीलयांतः, स्थगितसमस्तवरिष्ठविघ्न जात । रवितनय प्रबोधमेतात् जिनपूजाकरणैकसा वधानान् ॥१॥ “ॐ शने श्हण शेषं पूर्ववत् ॥” इति शनि पूजनम् ॥५॥ 'अमृतवृष्टिविनाशितसर्वदो, पचितविघ्न विषः शश लांबनः ॥ वितनुतात्तनुतामिह देहिनां, प्रसृततापन रस्य जिनार्चने ॥ १॥ - ___ “॥ ॐ चंद्र इह शेषं पूर्ववत् ॥” चंपूज नम् ॥६॥ बुधविबुधगणार्चितांघ्रियुग्म, प्रमथितदैत्य विनी तपुष्टशास्त्र ॥ जिनचरणसमीपगोधुनात्वं, रचय मतिं जवघातनप्रकृष्टाम् ॥१॥ “॥ ॐ बुध हा शेषं पूर्ववत् ॥” इति बुधप्पू जनम् ॥७॥

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