Book Title: Jain Dharm Sindhu
Author(s): Mansukhlal Nemichandraji Yati
Publisher: Mansukhlal Nemichandraji Yati

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Page 832
________________ OLVO जैनधर्मसिंधु. “ ॥ ऊँ वायो ईहण शेषं पूर्ववत् ॥” इति वायु पूजनम् ॥ ६॥ कैलासवास विलसत्कमलाविलास । संशुझहासकृतदौस्थ्यकथानिरास ॥ श्रीमत्कुबेरजगस्नपनेत्र सर्वं । विघ्नं विनाशय शुजाशय शीघ्रमेव ॥१॥ “॥ ॐ कुबेर इह शेषं पूर्ववत् ॥” इति कुबेर पूजनम् ॥ ७॥ गंगातरंगपरिखेलनकीर्णवारि, प्रोद्यत्कपईपरिमंमित पार्श्वदेशम् ॥ नित्यं जिननपनदृष्टहृदः स्मरारे, विघ्नं निहंतु सकलस्यजगत्रयस्य ॥१॥.. " ईशान इह शेषं पूर्ववत् ॥” इतीशान पूजनम् ॥ ७॥ फणमणिमहसा विनासमानाः । कृतयमुनाजलसं श्रयोपमानाः ॥ फणिन इह जिनानिषेककाले । बलि जवनादमृतंसमानयंतु ॥१॥ “ॐ नागा श्ह० शेषं पूर्ववत् ॥” इति नाग पूजनम् ॥१॥ विशदपुस्तकशस्तकरयाप्रथितवेदतया प्रमदप्रदः॥ जगवतः स्नपनावसरे चिरं । हरतु विघ्नजरं जुहि यो विजुः ॥१॥ “॥ ॐ ब्रह्मन् श्ह० शेषं पूर्ववत् ॥” इति ब्रह्म पः पूजनम् ॥१०॥

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