Book Title: Jain Dharm Sindhu
Author(s): Mansukhlal Nemichandraji Yati
Publisher: Mansukhlal Nemichandraji Yati

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Page 833
________________ अष्टमपरिछेद. ऐसें क्रमसें दिकपालपूजन करे। पीछे फिर जी हाथमें पुष्पांजलि लेकर आर्या पढे ॥ दिनकरहिमकरसुत, शशिसुतबृहतीशकाव्यर वित नयाः ॥ राहो केतो क्षेत्रप, जिनार्चने जवत सन्नि हिताः॥१॥ यह पढके ग्रहपीगेपरि पुष्पांजलिदेप करे । पीले पूर्वादिक्रमसे सूर्य, शुक्र, मंगल, राहु, शनि, चंड, बुध, बृहस्पति, श्नको स्थापन करे. हेठ केतु को, और उपर क्षेत्रपालकों स्थापन करे, पीछे प्रत्येक ग्रहकका पूजन करे। विश्वप्रकाशकृतजव्यशुनावकाश । ध्वांतप्रतानपरिपातनसहिकाश ॥ श्रादित्य नित्यमिह तीर्थकरा निषेके । कल्याणपल्लवनमाकलय प्रयत्नात् ॥१॥ “॥ ॐ सूर्य श्ह शेषं पूर्ववत् ॥” इति सूर्य पूजनम् ॥१॥ स्फटिकधवलशुमध्यानविध्वस्तपाप । प्रमुदितदितिपुत्रोपास्यपादारविंद ॥ त्रिभुवनजनशश्वजंतुजीवानुविद्य । प्रथय जगवतोर्चा शुक्र हे वीतविनाम् ॥१॥ “॥ ॐ शुक्र श्हा शेषं पूर्ववत् ॥” इति शुक्र पूजनम् ॥ ॥ . प्रबलबलमिलितबहुकुशल, सालनाल लितकसित

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