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अष्टमपरिछेद.
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हैं जिनोंने, ऐसेलोकोंके मनको आनंद देनेवाले होके, देवेंद्रसमान रुद्धिवाले, दयामें तत्पर, दानविनयसं युक्त, कामजोगों से विरक्त, संपूर्ण धर्मके अनुष्ठांनसें, शुभ ध्यानरूप अग्निसें चार घातिकर्मरूप इंधन कौ दग्ध किये हैं- जिनोंनें ऐसें महासत्त्व, निर्म ल केवल ज्ञान, सर्व मलकर्मसें रहित, होकर शीघ्र सिद्ध होते हैं. ॥ ५३ ॥ यह निर्मल फल जाणके बहोत मान देने योग्य जो देव, सोही नये सूरि, ऐसें जो जिन तिनके वचनसें यह उपधान महानि शीथ सूत्रसें सिद्ध करो . - इस अंतिम गाथामें प्रक रणकर्त्ता श्रीमान देवसूरिने जगवान्के 'महमाणदे वसूरिस्स' इस विशेषणद्वारा अपना जी नाम, सूचन करा है. ॥ ५५ ॥ इत्युपधानप्रकरणनावार्थः॥ ॥ इत्युपधानविधिः ॥
अथ मालारोपण विधि कहते हैं. ॥ तहां पिठ लाही नंदि क्रम जाणना । और इतना विशेष दे कि, मालारोपनतपके पूर्ण हुए तत्कालही वा दिनां तरमें होता है तहां यह विधि है. ॥ मालारोपण सें पहिले दिनमें साधुयोंकों छान्न पान वस्त्र पात्र वस ति पुस्तक दान देवे, संघको जोजन देवे, वस्त्रादि कसें संघकी पूजा करे, शुभ तिथि वार नक्षत्र लग्न में, दीक्षाके उचित दिनमें, परम युक्तिसें बृहत्स्नात्र विधिसें जिनपूजा करे, माता पिता परिजन साधर्मि