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अष्टमपरिच्छेद.
दिविधि सोही और दंक तिसके (पौषधप्रतिमाके) जिलापसें कहना ॥ इतिपौषधप्रतिमा ॥ ४ ॥ ऐसें पांचमासादिकालवाली शेषप्रतिमायोमें जी यही पूर्वोक्त विधि है. नंदिकमाश्रमण दंगकादि तिसतिस प्रतिमाके जिलापसें. व्रतचर्या सोही है, परं संप्रतिकाल में, पर्यायसें, वा संहननकी शिथि लतासें, पांचमी प्रतिमासें लेके इग्यारहमीतक प्रति मानुष्ठानका विधि शास्त्रोंमें नहि दिखतादें प्रतिमाका आरंभ शुभ मुहुर्तमें करना ॥ इति देश विरतिसामा विकारोपण विधिः ॥
उपधान विधि ॥
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श्रुतसामा विकारोपण विधि कहते हैं. ॥ तहां यति योकों श्रुतसामायिकारोपण, योगोऽइन विधिसें होता है. उनका श्रुतारोपण, श्रागम पाठसें होता है. और योगोहन श्रागमपाठ रहित एसे गृहस्थोंको, श्रुत सामा विकारोपण, उपधानोद्वहनसें होता है. सो श्रु तारोपण, परमेष्ठिमंत्र, ईर्यापथिकी, शक्रस्तव, चैत्यस्त व, चतुर्विंशतिस्तव श्रुतस्तव, सिद्धस्तवादि पाठकरके होता है. ॥
उपधीयते ज्ञानादि परीक्ष्यते श्रनेनेत्युपधानं - जि ससें ज्ञानादिकी परीक्षा करिये, तिसको उपधान कहते है. अथवा चार प्रकार के संवर समाधिरूप सुखशय्यामें उत्तम होनेसें उत्सीर्षक स्थानमें उप