Book Title: Jain Dharm Sindhu
Author(s): Mansukhlal Nemichandraji Yati
Publisher: Mansukhlal Nemichandraji Yati
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जैनधर्मसिंधु. करने. तिसके अंतमै दोगाथाओंकी और दोनों वृत्तों की समकालही वाचना. तिसमें पांच अध्ययन है। तिसमें प्रथमकी दो गाथाओंके दो अध्ययन ॥ यथा॥ ____“॥ पुरकरवरदीवढे, धायश्संडे श्र जंबुदीवेश्र। जरहेरवय विदेहे, धम्माश्गरे नमसामि । १। तम तिमिरपमल विसणस्स, सुरगणनरिंदमहिअस्स ।
सीमाधरस्स वंदे, पप्फोमिअमोहजालस्स । ३। तीस . रा अध्यायन वसंततिलका वृत्तसें ॥ यथा ॥
॥जाजरामरणसोगपणासणस्स, कहाणपुक्ख .लविसालसुहावहस्स । को देवदाणव नरिंदगण चिस्स, धम्मस्स सारमुवलन करे पमायं ।३। चौथा अध्ययन शार्दूलविक्रीमितवृत्तके पूवार्डसें। यथा
॥ लोगो जल पहिलं जगमिणं तेलुकमच्चासुरं, धम्मो वहुउँ सास विजय धम्मुत्तरं वदउँ ।। ॥५॥” इति श्रुतस्तवोपधानम् ।।इति षमुपधानानि ।
तथा सिहस्तवमें प्रथम तीन गाथाकी वाचवा यथा ___“ सिकाणं बुखाणं, पारगयाणं परंपरगयाणं । लोअग्ग मुवगयाणं, नमो सया सबसिकाणं ।। जो देवाण विदेवो, जं देवा पंजली नमसंति । तं देवदेवमहिरं, सिरसा वंदे महावीरं ।। कोवि नमुक्कारो, जिणवरवसहस्स वझमाणस्स । संसार सागराऊ, तारे नरं व नारिं वा ॥३॥” शेष दो गाथा ॥ यथा ॥

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