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जैनधर्मसिंधु.
पहिन सुस्थान पर बेठके पंचपरमेष्टीका ध्यान करे. पूर्व अथवा उत्तर दिशा सन्मुख बेठके शरीर और स्थानकी शुद्धि करके मन समाधिसे जाप करे.
पवित्र हो किंवा अपवित्र हो. सुस्थित हो वा दुःस्थित हो परं पंचपरमेष्टी नवकारमंत्र के जपने सें प्राणि सर्व पापसें रहित होता है. अंगुली के छाय नागसें, मेरुकों उल्लंघन करके, संख्यारहित, जो जाप करे सो प्रायः अल्प फल कारक होता है.
उत्कृष्ट, मध्यम, अधम ए तीन प्रकारके जाप कहे जातें है. उसमें कमलादिक विधिसे जाप किया जायसो उत्कृष्टहे. जपमाला से जाप किया जाय सो मध्यमदे. विना मौन, विना संख्या, विना चित्त स्थिर रख्खे, विना अचल यासन, विना ध्यान जो जाप किया जाय सो अधम जाप कहा जाता है. पीछे गुरुके पास जाके अथवा अपने घरमें अपने पापकी शुद्धी के वास्ते श्रावश्यक ( प्रतिक्रमण ) करे.
रात्रिके पापकी शुद्धीके वास्ते राई, दिनके पा पकी शुद्धी के वास्ते दैवसिक, पनरे दिनकी शुद्धीके वास्ते पाहीक, चारमासके पाप. शुद्धीके वास्ते चोमासी, बारमासके पापकी शुद्धीके वास्ते सां वत्सरीक; एसें पांच प्रतिक्रमण कहेहे. प्रतिक्रमण करके, कुल क्रमकों याद करके, हर्षित चित होके मंगल स्तुतिका पाठकों याद करे.