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जैनधर्मसिंधु. व्यसन (कष्ट) संयुक्त होवे, कन्यादानमें ऐसें कुल
और पुरुषको वर्जना. मूर्ख, निर्धन, दूर देशमें रह नेवाला, शूर, योझा, मोदा जिलाषी, कन्यासें तीन गुणासे अधिक उमरवाला, श्नको जी कन्या न देनी. तिसवास्ते दोनों अविकृत कुलोंका, और दोनों विकृत कुलवालोंका विवाहसंबंध योग्य है. तथा पांच शुछियें देखके वधूवरका संयोग करना, सोही दिखावे हैं. राशि १, योनि २, गण ३, नामी ४, और वर्ग ५, येह पांच शुछियें दोनोंकी देखके वरवधूका संयोग करना. । कुल १, शील २, स्वामि पणा ३, विद्या ४, धन ५, शरीर ६, और वय ७, येह सातो गुण वरमें देखने, अर्थातू येह सात गुण वरमेंदेखके कन्या देनी. आगे जो होवे, सो कन्या का नाग्य है. गर्नसें आठ वर्षसे लेके ग्यारह वर्ष तांश कन्याका विवाह करना छ तिसके ऊपरांत रज खला होती है. तिसको राका जी कहते हैं. तिस का विवाह शीघ्र होना चाहिये. वरको पाकरके ___* यह कथन प्रायः लौकिकव्यवहारानुसार है. क्योंकि, जैना गममें तो “ जोवणगमणमणुपत्ता" इतिवचनात्, जब वरकन्या योवनको प्राप्त होवे, तब विवाह करना. और 'प्रवचनसारो घार' में लिखा है कि, सोलां वर्षकी स्त्री, और पच्चीस वर्षका पुरुष, तिनके संयोगसें जो संतान उत्पन्न होवे, सो बलिष्ठ होवे है. इत्यादि मूलागमसे तो बाललानका और वृध्धके विवाहका निषेध सिद्ध होता है. ॥