________________
४३
अष्टमपरिछेद. सम्यक्त्व है. सो सम्यक्त्व हृदयमें है, ऐसा पांच लद णोंकरके मालुम होता है, वे पांच लक्षण कहते हैं.॥
शमसं0-जिस जीवमें अनंतानुबंधि क्रोध मान माया लोनका उपचय देखिये, अर्थात् अपराध कर नेवालेके ऊपर जिसको तीव्र कषाय उत्पन्न होवेही नही, यदि उत्पन्न होवे तो, तिस क्रोधादिको निष्फ ल करदेवे, इस शमरूप लक्षणसें जाणिये कि, इस जीवमें सम्यक्त्व है।१। संवेग-जिसके हृदयमें संवेग संसारसे वैराग्यपणा होवे, तिस जीवमें संवे गरूप लक्षणसें सम्यक्त्व जाणना । २ । संसा रके सुखों ऊपर वेषी, वैराग्यवान्, परवशपणेसें कुटुं बादिकके पुःखसे गृहस्थपणेमें रहा हुआ मोदानि लाषी, जो जीव है, तिसमें निर्वेदरूप लक्षणसें सम्य क्त्व हैं.। ३। जिसके हृदयमें फुःखिजीवोंको देख के अनुकंपा (दया) उत्पन्न होवे, खिजीवोंके पुःखोंको दूर करनेका जिसका मन होवे, जो फुःखि जीवको देखके अपने मनमें दुःखी होवे, शक्तिश्र नुसार दुःखिजीवके पुःखोंको दूर करे, तिसमें अनु कंपारूप लक्षणसें सम्यक्त्व उपलब्ध होता हैं।४। जिनोक्त तत्त्वोंमें अस्तिनाव का होना, सो आस्ति क्य । ५। एतावता शम १, संवेग २, निर्वेद ३, अनुकंपा ४, और श्रास्तिक्य ५, इन पांचों लक्षणों सें हृदयगत सम्यक्त्व जाणना, ॥ १४ ॥