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पंचमपरिवेद.
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री वे ॥ खट वर्षन के संजम लीनो, वीरवचन चित्त धारी वे ॥ श्री० ॥ १ ॥ विजय नृपति श्रीदेवी नंद न, कोलासपुर अवतारी वे ॥ अंग अग्यार पढे गुण आदर, त्रिविध त्रिविध अविकारी वे ॥ श्री० ॥ ॥ २ ॥ तपगुण रयण संवत्सर आदिक, करके काय उद्धारीवे ॥ प्रभु देशें बिपुलाचल परि, करी
सण अति जारी वे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ केवल पाय मुक्ति गये मुनिवर, कर्म कलंक निवारी वे ॥ श्रढा रमताले तिहिं गिरि उपर, कीनी थापना सारी वे ॥ ० ॥४॥ वाचक अमृत धर्म सुगुरुके, सुपसाये, सुविचारी वे ॥ शिष्य क्षमाकल्याण दरख धर, गावे यति जयकारी वे ॥ श्री० ॥ ५ ॥ इति सद्याय ॥
॥ अथ श्री करकंडू प्रत्येक बुधजीनी सद्या ॥ ॥ चंपा नगरी अति जली || हुं वारी लाल || दधिवाहन नूपाल रे || हुं वारी लाल ॥ पद्मावती कूखें उपनो || हुं० ॥ कर्मे कीधो चंगाल रे || हुं ॥ ॥ १ ॥ करकंडुने करुं वंदा || हुं० ॥ पहिलों प्रत्येक बुध रे || हुं० ॥ गिरुवाना गुण गावतां ॥ ० ॥ स मकित थाये शुद्ध रे ॥ हुं० ॥ २ ॥ लाधी वांशनी लाकमी ॥ हुं० ॥ थयो कंचनपुर राय रे ॥ हुं० ॥ बापसुं संग्राम मांगी || हुं० ॥ साधवी ली सम जाय रे || हुं० ॥ ३ ॥ वृषन रूप देखी करी ॥ हुं० ॥ प्रतिबोध पाम्यो नरेश रे ॥ हुं० ॥ उत्तम संजम