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तृतीयपरिच्छेद .
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नया मंदिर बनाना चाहे तो अपने घर में प्रवेश करते कायें हाथपर जमीनसें देढ हाथ उंचे शल्य रहित पवित्र स्थानपर मंदिर बनावे. पूजा करने - वाला पूर्व अथवा उत्तर दिशाके सन्मुख बेठे परं विदिशामें न बेठे और दक्षिण दिशातो सर्व कार्यमें वर्जित.
पूर्व दिशा सामने बेहके पुजा करनेसें लक्ष्मीका लाज होय. अग्नि दिशामें बेठेतो संताप उपजावे. दक्षिण दिशामे मृत्यु कारक. नैरुतमें बेठेतो उपद्रव करे. पश्चिम और वायव्य दिशामें बेठेतो संतानकी हानी करे. दो पांव, दो ढीचण, दोहाथ, दो स्कंध ( खजा ) एक मस्तक यह नव स्थान पर अनुक्रमसें जगवंतकी प्रथम पूजा करे. उत्तम चंदन और केशर विना पूजा न करनी. ललाट, मस्तक कंड, हृदय, पेट, इतने स्थानपर अपने तिलक करना.
प्रजातें शुध्ध वाससें, मध्यान्हें पुष्पादिकसे संध्या समय धूप दीप जगवंतकी पूजा करनी एक पुष्पके दो विजाग न हि करना. कलिको च्छेदनान हि पत्र, पांख मि, कलिकों ठेदन करनेसें हिंसा जेसा पाप लगता है. हस्त से गिरा, पेरकोलगा, जमीन पर पमा, शीर पर धरा एसे पुष्पोंसें कहि पूजा न करनी गंध रहित, तीव्र सुगंध बाला, नीच जातिजन फर्शित, कीटक दंशित, मलीन वस्त्र से वेष्टित, एसे पुष्पसें पूजा कर
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