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जैनधर्मसिंधु. षणपर्वणीमें अवश्य कल्पसूत्र सुनना. और यथा शक्ती विशेष धर्म कर्म करना. श्रावक धर्म क ममे संतोष न करे परं आरंजादिकमे संतोष करके अवश्यत्याग करे. उत्तम श्रावक एकवीस वार जो कल्प सूत्रकों सुनेतो अवश्य आउनवमें सिद्धि पदको प्राप्त हो शक्ता हे. निरंतर सम्यक्तके और ब्रह्मचर्यके पालनेसें जो लाल होताहे उससे अधिक कल्प सूत्र सुननेंसें होशक्ता हे. दान देनेसें विचित्र तप करनेसें, सत्तीर्थके सेवन करनेसें, जो प्राणिगणके पाप क्षय होते हे सो सब शास्त्र श्रवण का महिमा हे. मुक्तिसें कोई अधिक तप, शत्रुजय से अधिक कोई तीर्थ, सम्यक्तसे कोई तत्त्व, कल्प सूत्रसे अधिक महिमांवंत को सूत्र नही हे. दीवा लीकी अमावास्याकी रात्रिको नगवंत महावीर स्वामी मोद गए और उसी प्रतिपदाके प्रातः काल श्री गौतम स्वामीजी केवल ज्ञान पाये हे इसलिए यह दोदीन अतीव पवित्र हे वास्ते उपरोक्त महा पुरु षोंका उसदिन ध्यान स्मर्ण करना. दीवालीमे दोन पवास, करके धूप, दीप, करके अखंम चावलसे गौ तम स्वामीके नामका वा मंत्रका जाप करे तो इह लोक परलोकमे महोदय सुख पामें. अपने घरमे वा ग्राम चेत्यमें विधि पूर्वक पूजा करके आरती मंगल दीपक करके अपने घर जायके अपने जा मित्र