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तृतीयपरिजेद. २७७
अथ वार्षिकचर्या माह - जैनोंको वर्षदिनमे अवश्य ग्यारह कृत्य करने चहिये सो बताते हे. प्रथम संघपूजा करनी सो यथाशक्ती नवकारवालीसें लेके सोनामोहोर प्रमुख सब श्रावकोंमे अथवा अपने अपने गछमे बाटनी. अजी वर्तमानकालमे जिस्कों (पहिरावनी ) कहते हैं सो यथाशक्ती वर्षमे एक दो चार वार अवश्य करना चाहिये (इससे महालाल होता है)
दूसरा कृत्य साधर्मीक वात्सल्य दरवर्षमे एकवारतो अवश्यमेव करना. दुःखी जैनोंका यथायोग्य यथाश क्ती समुशरण करना. गुप्त दान करना. श्रावकोंकों आमंत्रण करके अंतरंग नक्तिनावसे जिमाना. और तांबुल पुष्पादिक देके प्रणाम करके सबका सत्कार करना. इससे तीर्थंकर गोत्र बंध होता हे.
तीसरा कृत्यमे अष्टाहिक यात्रा सो अष्टान्हिका महोत्सव मंदरजीमें करना. नही बनेतो एक वर्षमे एक वार पूजा तो अवश्य पढानी. ॥ चोथा कृत्यमें रथयात्रा सो एक वर्षमे एक वार अवश्य रथ निका लना. एकिलेसे नबनेतो कितनेक समुदाय मिलकेनी अवश्य करना. ॥ पांचमां कृत्यमे तीर्थयात्रा सो पंचतीर्थी वा हर कोइली तीर्थकी समुदायसहित यथाशक्ती हरएकवर्ष एक यात्रा तो अवश्यकरनी.