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तृतीयपरिजेद. २५ए गुण उत्पन्न होनेके लिए कोई कुल वा खांण नही हे परं उत्तम प्राणि अपने गुण करके प्रख्यात
और उच्चदशा प्राप्त होता हे. जेसें सत्वादि गुण युक्त प्राणी राज्य योग्य हो जातेंहें तेसें एक विंश शति गुण युक्त होनेसें प्राणिगण धर्म योग्यहो शक्ते हे.
(१) जिस्का हृदय कुछ (तुब) नहो, (५) सौम्य होय, (२) रूपवंत हो (४) जन वन्वन हो (५) कुर न हो, (६) नवनीरु (संसारसें जन्म जरामरणादिकसे मरताहो)(७) मूर्ख न हो (1) दाक्षिणतावाला हो () लजावंत हो (१०) दया सहित हो (११) मध्यस्थ हो (१२) सौम्यदृष्टि हो (१३) गुणरागी हो (१४) सहता हो (१५) सुपरिवारयुक्त हो (१६) दीर्घदृष्टी हो (१७) कुल परंपराकों माननेवाला हो. (१७) विनीत हो. (१ए) गुणकों नूलनेवाला न हो(२०) परहित हितार्थी हो (२१) सब बातोका सम जदार हो. यह किस गुण युक्त प्राणी धर्म रत्नके योग्य हो शक्ताहे.
पंडित पुरुषोने बहुत करके राज कथा, देशक था, स्त्री कथा, लक्त कथा नही करनी क्यों की एसी विकथा करनेसे कुछ लान तो होता नही परं अनर्थका तो बरोबर संजव हे.
धर्म कथाजी अपने सुमित्रो और बंधवोंसे कर.