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द्वितीयपरिबेद. ॥ अथ नवपदली करण विधिलिख्यते ॥ (प्रथम) आसोज शुदि ७ (अथवा) चैत्रसुदि से उली सरू करें। (कदास) तिथि घटी हुवे तो (६) से वढी होय तो आरिम से सरू करै । (पिण) आंबिल (ए) पूनिमताई करै । (तिहां) प्रथम नूमि शुरू करके । मांमणादिक से चित्रित करै। पीने बाजोट ऊपरि सिहचक्र थापे. त्रिकाल पुजा करें। (सोलिखते हैं) प्रजात समय राई पडिकमणो करिके । पी. वस्त्र पडिलेहै। ( जहां ) सिक चक्र स्थापना हे ( तहां ) आयके पांच शक स्तवे देव वांदै । पीछे नव चैत्ये । (अथवा) नव प्रतिमा आगे। नव चैत्यवंदण करै । वास क्षेप पूजा करै । पीछे केसर चंदनसे पूजा करै । पीछे मध्याह्न समय पांच शक्र स्तवे देव बांदै। पी गुरु पास श्रायके । राई आलोवे । अब्लुहिमि खमायके आंबिलनो पच्चरकांण करै । प्रथम अरिहंत पदके वरण सपेद है। (इससे) श्रां बिल में चावल (और) गरम पाणी यह दोश् अव्य लेसुं । सो आंबिल पचखके । पी अरिहंत पदके बारे गुण है सो चिं तवि के बारै नमस्कार करै । सो लिखते हैं (प्रथम सब ठिकाणे) श्वामि खमासमणो । वं० इत्यादि कहि के नमस्कार करै ॥