________________
हितीयपरिछेद.
२३३
॥ बत्रीस कल्यानक तप ॥ प्रथम एक अहम करके पीछे बत्तीस एकांतर उपवास करना और अंतमे एक अहम करना. इस तपमे आमतीस उपवास और चोत्तीस पारणे होते हे. दोमास बारे दिनसे तप पूरा होताहे. सिद्ध पदगुणना. उद्यापनमे जिनगृहमे बत्तीस बत्तीस वस्तु ढोकनी. ज्ञान गुरु संघ नक्ति करनी.यह तप वसुदेवहिंडी में लिखाहे.
॥ कर्म चक्रवाल तव ॥ प्रथम एक अहम करके एकांतर एक शह उपवास करने और अंतमे एक अहमकरना. ६१ उपवास और ६३ पारणेसें चारमास दशदिनकों तप पूरा होताहे. सिझपदगुणणा. उद्यापनमे आह आह वस्तुजिन मंदिरमें ढोकना. झान गुरु संघ नक्ति करना.
॥ शिव कुमार बेला तप ॥ इसमे बारे बेला (5) निरंतर अथवा सांतर करना. सिझपदगुणना. पारणेमे यथा शक्ति आयंबिल करना. उद्यापनमें बारबारे वस्तु जिन मंदिरमे ढोकना. ज्ञान गुरु संघकीनक्ति करना.
॥कर्म चूरन तप ॥ प्रथम एक अहम करके सात एकांतर उपवास करना और अंतमें एक अहम करना. ६६ उपवास और ६५ पारणा चारमास आठ दिनको यह तप पुरा होताहे. उद्यापनमें आशाखा सहित चांदीके वृक्षको सुवर्ण कुलामी