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जैनधर्मसिंधु
॥ मोक्ष दंडक तप ॥ गुरुके हाथमे रखनेका दंडक अपने हाथ में लेके अपनी मुट्ठीसे जरना जितनी मुट्ठी होय उत्तना एकांतर उपवास करना. अथवा दूसरी विधि यह दे की एकासा बार, नीवी नव, आयंबिल पांच, उपवास एक, एवं सत्तावीस दीन तप करना. सिद्ध पद गुणना उद्यापन में बेल्ले उपवास के दिन एक थाल मे चावल जर श्रीफल रोकमं द्रव्य रखके वाजित्र सहित गीतगाते गुरुके पास जाके दंडकी पूजा करके थाल जेट करना. वस्त्रादिक वेराना. ज्ञानकी संघकी जक्ति करनी.
॥ दवयंती तप ॥ एकेक जिन श्राश्रयी वीस प्रायंबिल करना. एसी चोवीस ली करना. यह बना तप होनेसें एक पच्चीसमी उली शासन देवीके ना. मकी करनी और गुणणा अनुक्रमसे जिस जिस जिनकी उली होय तिस्का नाम गुणा और शासना देवीकी उली मे शासना देवीका नाम गुण या. इसमें पांच आयंबिल और चोंवीस पारणा होते हे. उद्यापनमें चोवीश जिनकी पूजापढानी. चोवीश तिलकचढाने. पांचसे मोदक चढाने और यथाशक्ती ज्ञान गुरु साधर्मिकन क्ति अवश्यकरना.
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॥ जलोदरी तप ॥ पुरुषको बत्तीस और स्त्रीको. ठावीस कवलका आहार होताहे तिस्मे यथा शक्ती न्यून करना उस्कों लोक प्रवाहमें उनोदरी