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द्वितीपरिद
२३७ तप कहतें हे. प्रथम दिन श्राफ दूसरे दिन बारे तीसरे दिन शोले, चोथे दिन चोवीस, पांचमे दिन एकत्रीस, कवलका आहार करणा और एकासणा का पचखान करना. सिक पद गुणणा. सब मिलके पुरुषको १ स्त्रीको न् कवल आहार पांच दिनमें लेणा. उद्यापनमे कवलकी संख्या प्रमाण मोदक चढाना. ज्ञान गुरु संघनक्ति करना.
॥निर्वाण तप ॥ श्रादि नाथजीके निर्वाणके ब उपवास करना. वीर प्रजुके निर्वाण पर उपवास दो करने. शेष तीर्थ करके निर्वाणके एकांतर उपवास तीस तीस करने. जिन जिन तीर्थ करके निर्वाणका तप, चलता होय तब उन उन तीर्थ करके नाम की नोकार वाली गुणनी. उद्यापनमे चोवीस तीलक, चोवी पक्कान, चोवीस फल, चोवीस संख्यामे सर्व वस्तुयें ढोकनी. ज्ञान गुरु श्री संघकी नक्ति करनी.
॥केवल ज्ञान तप ॥ श्रीश्रादिनाथजी, महीनाथजी, पार्श्वनाथजी, नेमनाथजी ए चार तीर्थंकरोके केवलझान कल्याणक के तीन तीन उपवास करने. वासुपूज्यज्यस्खामीका एक उपवास और सब उन्नीस तीर्थकरोंके दोदो उपवास करने. सबमील ५१ उपवास करने. उद्यापनमें ५५ मोदक फल, फूल, नैवेद्य, ढोकना गुरुनक्ति करना